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विजयोदया टीका एतेषामसंख्यातगुणनिर्जराः सम्यग्दर्शनादिगुणनिमित्तात्कथमफलता । क्षायिकं सम्यक्त्वं ज्ञानं चारित्रं च यत्साध्य तदखिलमवाप्यत एव इतरकालवृत्तयापि भावनया । तदेव चोद्यं चोद्यते इति चेतसि कृत्वा सूरिश्चोद्यानुसारेणापि परिहत्तुं शक्यते इत्याचष्टे
आराहणाए कज्जे परियम्म सव्वदा वि कायव्वं ।
परियम्मभाविदस्स हु सुहसज्झाराहणा होइ ॥ १९ ॥ आराहणाए कज्जे इति । आराधनाशब्दः सम्यग्दर्शनादिपरिणामसंसिद्धिमनाश्रितकालभेदां प्रतिपादयितुं उद्यतोऽपि मरणे विधायित्ता इत्यत्र मरणकालविशेषस्य प्रस्तुतत्वात प्रकरणानुरोधेन तद्विषयायामेवाराधनायां गृह्यते । ततोऽयमर्थः-मृतिकालगोचररत्नत्रयसिद्धयर्थ 'परियम्म' परिकर्म परिकरः । 'सव्वदा' सर्वस्मिन्नपि काले-ग्रहणकालः, शिक्षाकालः, प्रतिसेवनाकालः सल्लेखनाकालश्चेह सर्वशब्देन गृह्यते । 'करणिज्ज' अवश्यकरणीयं । कुतोऽयं नियोग इत्याशंक्याह-'परिकम्मभाविदस्स' 'खु' परिकरण भावितस्यैव 'खु' शब्दोऽवधारणार्थः । 'सुखसज्झा' होदि' सुखेन क्लेशमंतरेण साध्या भवति । का 'आराधणा' आराधना मृतिगोचरा ।
येन हि यत्साध्यं तेन पूर्व तस्य परिकरोऽनुष्ठेय इत्यमुं अर्थ दृष्टांतवलेन साधयितुमुत्तरसूत्रम् । तथा च वदंति 'दृष्टांतसिद्धावुभयोविवादे साध्यं प्रसिद्धयेत्' [स्वयंभू स्तो० ५४] इति ।
जह रायकुलपसूओ जोग्गं णिच्चगवि कुणइ परियम्मं ।
तो जिदकरणो जुद्धे कम्मसमत्थो भविस्सदि हि ।। २० ॥ तो जब इनके सम्यग्दर्शन आदि गुणोंके निमित्तसे असंख्यात गुणी निर्जरा होती है तो वे निष्फल कैसे हैं ? जो साध्य है क्षायिक सम्यक्त्व, ज्ञान, चारित्र वह सब, अन्यकालमें की गई रत्नत्रय भावनासे प्राप्त होता ही है ।।१८।।
उक्त गाथामें उठाये गये तर्कको मनमें रखकर आचार्य तर्कके अनुसार भी उसका परिहार हो सकता है यह कहते हैं
___ गा०-आराधनाके कार्यके लिये परिकर्म सभी कालमें करना चाहिये; क्योंकि परिकर्म करने वालेके ही आराधना सुखपूर्वक साध्य होती है ॥१९॥
टो०-यद्यपि आराधना शब्द कालभेदका आश्रय न लेकर सम्यग्दर्शन आदि परिणामोंकी सम्यक् सिद्धिको कहता है तथापि १५ वी गाथामें 'मरणे विराधयित्ता' ऐसा कहनेसे मरणकाल विशेषके प्रस्तुत होनेसे प्रकरणके अनुरोधसे मरणकाल सम्बन्धी आराधनाके अर्थ में यहाँ लिया गया है। तब यह अर्थ होता है-मरते समयके रत्नत्रयकी सिद्धिके लिये सर्वदा, ग्रहणकाल, शिक्षाकाल, प्रति सेवनाकाल और सल्लेखना काल इन सब कालोंमें परिकर्म अर्थात् सम्यक्त्वादि अनुष्ठान करना चाहिये; क्योंकि जो अन्यकालोंमें भी रत्नत्रयके परिकरका पालन करता है उसीके मरते समयकी आराधना सुखपूर्वक होती है ।।१९।। ___जो व्यक्ति जिस कामको सिद्ध करना चाहता है उसे पहले उसकी साधन सामग्रीका आयोजन करना चाहिये, इस बातको दृष्टान्तके बलस साधन करनेके लिये आगेकी गाथा कहते हैं । क्योंकि समन्तभद्र स्वामीने कहा है कि वादी और प्रौर प्रतिवादीमें विवाद हो तो दृष्टान्तकी सिद्धि होने पर साध्यको सिद्धि होती है
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