Book Title: Bhagavati Aradhana
Author(s): Shivarya Acharya
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 967
________________ भगवती बाराधना घम्मामावेण दु लोगग्गे पडिहम्मदे अलोगेण । गदिमुवकुणदि हु धम्मो जीवाणं पोग्गलाणं च॥ २१२८॥ 'धम्मामावेष दु धर्मास्तिकायस्यामावे लोकाने प्रतिहन्यते अलोकेन, यतो जीवपुद्गलानां गतरूपकारको धर्मः स चोपरि नास्ति ।।२१२८॥ जं जस्स दु संठाणं चरिमसरीरस्स जोगजहणम्मि । तं संठाणं तस्स दु जीवघणो होइ सिद्धस्स ।।२१२९।। दसविधपाणाभावो कम्माभावेण होइ अच्वंतं । अच्चंतिगो य सुहदुक्खामावो विगददेहस्स ॥२१३०॥ दविधानां प्राणानामत्यंतामावेन भवति वात्यंतिकश्च सुखदुःखाभावः ॥२१२९-२१३०॥ जं पत्थि बंधहेतुं देहग्गहणं ण तस्स तेण पुणो। कम्मकलुसो हु जीवो कम्मकदं देहमादियदि ॥२१३१।। 'संपत्ति बंधहेर्दु' यन्नास्ति बंधकारणं तेन न मुक्तस्य देहग्रहणं, कर्मकलुषीकृतो हि जीवः कर्मकृतदेहमादते ॥२१३१॥ ....कज्जाभावेण पुणो अच्चं णत्थि फंदणं तस्स । __ण पओगदो वि फंदणमदेहिणो अस्थि सिद्धस्स ।।२१३२।। कोस विस्तार वाले दो वातवलयोंके ऊपर एक हजार पांच सौ पिचहत्तर धनुष विस्तार वाला तीसरा तनुवातवलय है। उसके पांच सौ पच्चीस धनुष मोटे अन्तिम भाग में सिद्ध भगवान विराजते हैं ।।२१२७॥ गा०-धर्मद्रव्य लोकके अग्रभाग तक ही है । अतः मुकजीव लोकानसे बागे अलोकमें नहीं बाता, क्योंकि धर्मद्रव्य गति करते हुए जीवों और पुद्गलोंको गतिमें उपकार करता है ।।२१२८।। गा-मन वचन काययोगोंका त्याग करते समय अयोगी गुणस्थानमें जैसा अन्तिम शरीरका आकार रहता है। उस याकाररूप जीवके प्रदेशोंका, घनरूप सिद्धोंका आकार होता है ।।२१२९॥ गा०—सिद्ध भगवानके कर्मोंका अभाव होनेसे दस प्रकारके प्राणोंका सर्वथा अभाव है। तथा शरीरका अभाव होनेसे इन्द्रिय जनित सुखदुःखका अभाव है ।।२१३०॥ गा-मुक्तजीवके कर्मबन्धका कारण नहीं है । अतः वह पुनः शरीर धारण नहीं करता। क्योंकि कर्मो से बद्ध जीव ही कर्मकृत शरीरको धारण करता है ।।२१३।। • गा–सिद्ध जीवोंको कुछ करना शेष न होनेसे उनमें हलन चलनका अत्यन्त अभाव है। १. एतां टीकाकारो नेच्छति । २. स होदि पुणो -अ०, मा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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