Book Title: Bhagavati Aradhana
Author(s): Shivarya Acharya
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 973
________________ भगवती आराधना 'एवं पण्डितपण्डित मरणेण' एवमुक्तेन क्रमेण पण्डितपण्डितमरणेण सर्वदुःखानामन्तं कुर्वन्ति । निरन्तराया निर्विघ्ना निर्वाणमनुत्तरं प्राप्ताश्च । एतेन पण्डित - पण्डितमरणं व्याख्यातं । ' पंडितपंडितमरणं गदं' ॥२१५३॥ ९०६ एवं आराधित्ता उक्कस्साराहणं चदुक्खंधं । कम्मरयविप्यमुक्का तेणेव भवेण सिज्झंति || २०५४ || 'एवं आराधित्ता' एवमाराध्य । 'उक्कस्साराघणं' उत्कृष्टाराधनां । 'चदुक्खं घं' समीचीनदर्शनज्ञान चरणतपोभिधानं चतुष्कत्वं । 'कम्मरजविष्पमुक्का' कर्मरजोविप्रमुक्तास्तेनैव भवेन सिध्यन्ति ॥ २१५४॥ आराधयित्तु धीरा मज्झिममाराहणं चदुक्खंधं । कम्मरयविमुक्का तदिएण भवेण सिज्यंति ॥ २१५५ ।। आराधयित्तु धीरा जहण्णमाराहणं चदुक्खंधं । कम्मरयविमुक्का सत्तमजम्मेण सिज्झति ।।२१५६ ॥ 'आराधयित्तु घोरा' आराध्य घीरा जघन्यामाराधनां चतुष्कंधां कर्मरजोविप्रमुक्ताः सप्तमेन जन्मना सिध्यन्ति ॥ २१५५-२१५६ ।। एवं एसा आराधना समेदा समासदो वृत्ता । आराघणाणिबद्ध सव्वंपि हु होदि सुदणाणं ॥ २१५७ ॥ 'एवं एसा' एवमेषा आराधना सप्रभेदा समासतो निरूपिता । आराधनायामस्यां निबद्ध सर्वमपि श्रुतज्ञानं भवति ॥ २१५७॥ आराघणं असेसं वण्णेदु होज्ज को पुण समत्थो । सूदकेवली व आराघणं असेसं ण वणिज्ज ॥ २१५८॥ गा०—इस प्रकार वे क्षपक पण्डितपण्डितमरणसे सब दुःखोंका अन्त करते हैं और बिना बाधा उत्कृष्ट निर्वाणको प्राप्त करते हैं ॥ २१५३ ॥ गा० - इस प्रकार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक् तपरूप चार प्रकारकी उत्कृष्ट आराधनाकी आराधना करके कर्मरूपी धूलिसे छूटकर उसी भवसे मुक्ति प्राप्त करते हैं ।। २१५४॥ गा०—उक्त चार भेदरूप मध्यम आराधनाकी आराधना करके धीर पुरुष कर्मरूपी धूलिसे छूटकर तीसरे भव में मुक्ति प्राप्त करते हैं ॥ २१५५ ॥ गा०—उक्त चार भेदरूप जघन्य आराधनाकी आराधना करके धीर पुरुष कर्मरूपी धूलिसे छूटकर सातवें भवमें मुक्ति प्राप्त करते हैं ॥ २१५६ ॥ Jain Education International गा० - इस प्रकार इस भेदसहित आराधनाका संक्षेपसे कथन किया । इस आराधनामें जो कुछ कहा गया है वह सब श्रुतज्ञान है || २१५७ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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