________________
९०५
विजयोदया. टीका इय सो खाइयसम्मचसिद्धदाविरियदिट्ठिणाणेहिं ।
अच्चंतिगेहिं जुत्तो अव्वाबाहेण य सुहेण ॥२१५०॥ 'इय सो साइय' एवमसौ क्षायिकेण सम्यक्त्वेन सिद्धतया वीर्येण अनंतज्ञानाद्यनंतदर्शनेन चात्यन्तिकेन युक्तोऽत्र्याबाधेन सुखेन ॥२१५०॥
अकसायत्तमवेदत्तमकारकदा विदेहदा चेव ।
अचलतमलेवत्वं च इंति अच्चंतियाई से ॥२१५१।। 'बकसायत्वं' अकषायत्वं, अवेदत्वमकारकता विदेहता बचलत्वमलेपत्वं च आत्यंतिकं तस्य भवति । क्रोधादिनिमित्तानां कर्मणां प्राक्तनानां विनाशादमिनवानां वाऽभावादकषायत्वमात्यन्तिकं एवमेवावेदत्वं । साध्यस्यापरस्याभावादकारकत्वं । प्राक्तनस्य शरीरस्य विलीनत्वाद्देहान्तरकारिणःकर्मणोऽभावाद्विदेहतया अवस्थान्तरप्राप्तिनिमित्तांतरामावादचलत्वं । कर्मनिमित्तपरिणामाभावात् प्राक्तनानां च कर्मणां विनाशादलेपत्वमप्यात्यन्तिकम् ।।२१५१॥
जम्मणमरणजलोघं दुक्खपरकिलेससोगवीचीयं ।
इय संसारसमुद्द तरंति चदुरंगणावाए ।।२१५२॥ 'चम्मलमरगनलोघं जन्ममरणजलौघं दुःखसंक्लेश्शशोकवीचिकं संसारसमुद्रं सम्यग्दर्शनज्ञानचरित्रतपस्संजितचतुरङ्गनावा तरन्ति ।।२१५२॥
एवं पण्डिदपण्डिदमरणेण करंति सव्वदुक्खाणं । अंतं णिरंतराया णिव्वाणमणुचरं पत्ता ।।२१५३।।
गा-इस प्रकार वह सिद्ध परमेष्ठी क्षायिक सम्यक्त्व, सिद्धत्व, अनन्तवीर्य, अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन और अव्याबाध सुखसे युक्त होते हैं । ये सब आत्यन्तिक होते हैं, इनका कभी विनाश नहीं होता ।।२१५०॥
गा०-टो०-क्रोध आदिमें निमित्त पूर्व कर्मोका विनाश होनेसे और नवीन कर्मों का अभाव होनेसे सिद्धोंमें आत्यन्तिक अकषायत्व हैं। इसी प्रकार आत्यन्तिक अवेदत्व है। उनके लिये कोई करने योग्य कार्य शेष न रहनेसे अकारकत्व भी सदा रहता है। पूर्व शरीरका विनाश होनेसे और नवीन शरीरको उत्पन्न करनेवाले कर्मका अभाव होनेसे सिद्धोंमें सदा विदेहता है । अन्य अवस्थाको प्राप्त होनेमें निमित्तका अभाव होनेसे सदा अचल हैं। उनके कर्मके निमित्तसे होनेवाले परिणामोंका अभाव होनेसे तथा पूर्वके कर्मोका विनाश होनेसे वे सदा लेपरहित होते हैं ॥२१५१॥
गा०—जिसमें जन्म मरणरूपी जलका समूह भरा है, दुःख संक्लेश और शोकरूपी लहरें उठा करती हैं; उस संसाररूपी समुद्रको सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तपरूपी नावसे पार करते हैं ॥२१५२॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org