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भगवती आराधना
दृष्टेर्मरणं बालबालमरणं तत्किमुच्यते बालमरणानीति । बालत्वं नाम सामान्यं वालबालेऽपि विद्यते इति बालमरणानीत्युक्तं ।
कीदृशी तहि मतिः कार्या संसारभीरुणा---
णिग्गंथं' पव्वयणं इणमेव अणुत्तरं सुपरिसुद्धं ॥ इणमेव मोक्खमग्गोत्ति मदी कायव्विया तम्हा ||४२ ||
णिग्गंथं पश्वयणं' | ग्रथ्नंति रचयन्ति दीर्घीकुर्वन्ति संसारमिति ग्रंथाः । मिथ्यादर्शनं मिथ्याज्ञानं, असंयमः कषायाः, अशुभयोगत्रयं चेत्यमी परिणामाः । मिथ्यादर्शनान्निष्क्रान्तं किं सम्यग्दर्शनं । मिथ्याज्ञानानिष्क्रांतं सम्यग्ज्ञानम् । असंयमात्कषायेभ्योऽशुभयोगत्रयाच्च निष्क्रान्तं सुचारित्रं । तेन रत्नत्रयमिह निर्ग्रथशब्देन भण्यते । 'पव्वणं' प्रवचनस्येदं अभिधेयं । 'इणमेव' इदमेव, 'अणुत्तरं' न विद्यते उत्तरं उत्कृष्टमस्मादिति अनुत्तरम् । 'सुपरिशुद्धं' सुष्ठु परिशुद्धं । 'इणमेव' इदमेव । 'मोक्खमग्गोत्ति' कर्मणां निरवशेषापायस्योपाय इति । 'मह' बुद्धिः । 'कायव्विया' कर्तव्या । 'तम्हा' तस्मात् । यस्मादेवंभूतायामसत्यां मत्यां दुःखमरणप्राप्तिरतीतकाल इव भविष्यत्यपि काले भविष्यतीति ॥४२॥
शङ्का -- मिथ्यादृष्टि का मरण बालबालमरण है । तब यहाँ बालमरण क्यों कहा है ?
समाधान — बालपना सामान्य है वह बाल- बाल में भी रहता है इसलिये 'बालमरण' ऐसा कहा है ।
विशेषार्थ - - पं० आशाधर जी ने अपनी टीकामें लिखा है कि कुछ 'सुविहिद' ऐसा पढ़ते हैं और उसका व्याख्यान वे 'हेतुचारित्र' ऐसा करते हैं । अर्थात् 'सुविहिद' को प्रवचनका विशेषण न करके सम्बोधनके रूपमें लेते हैं ॥४२॥
तब संसारसे डरने वालेको कैसी मति करनी चाहिये, यह कहते हैं-
गा०-
० - - इसलिये रत्नत्रयरूप जो प्रवचनका अभिधेय है यही सर्वोत्कृष्ट और पूर्णरूपसे निर्दोष है । यही मोक्षका मार्ग है ऐसी मति करनी चाहिये || ४२ ॥
टी० - जो संसारको 'ग्रथ्नंति' रचते हैं उसे दीर्घं करते हैं उन्हें ग्रन्थ कहते है । ये ग्रन्थ हैं मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, असंयम, कषाय और तीन अशुभ योगरूप परिणाम । मिथ्यादर्शनके हटनेसे सम्यग्दर्शन होता है । मिथ्याज्ञानके हटनेसे सम्यग् ज्ञान होता है। असंयम, कषाय और तीन अशुभयोगोंके हटनेसे सम्यक्चारित्र होता है । अतः यहाँ निर्ग्रन्थ शब्दसे रत्नत्रय कहा है । और 'पव्वयण' का अर्थ प्रवचन में कहा गया विषय है। जो प्रवचनमें कहा रत्नत्रय है वही अनुत्तर है अर्थात् उससे उत्कृष्ट कोई नहीं है और वही पूर्ण शुद्ध है, वही मोक्षमार्ग अर्थात् समस्त बुराइयों क उपाय है । ऐसी मति करना चाहिये, क्योंकि इस प्रकारकी मतिके न होनेपर दुःखदायक मरणोंकी प्राप्ति अतीतकालकी तरह भविष्यकालमें भी होगी || ४२ ॥
१. अन्ये तु निःसंग प्रवचनमिति प्राधान्येन व्याचक्षते - मूलारा० ।
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