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भगवती आराधना
सट्ठि साहसीओ पुत्ता सगरस्स रायसीहस्स ।
अदिबलवेगा संता णट्ठा माणस्स दोसेण || १३७५।।
'सह साहस्सीओ' सगरस्य राजसिंहस्य चक्रिणः षष्ठिसहस्रसंख्याः पुत्रा महाबलाः विनष्टा मानदोषेण ॥। १३७५ ॥ माणत्तिगदं ।
मायादोषनिरूपणायोत्तरगाथा
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ज कोडसमिद्धो व ससल्लो ण लभदि सरीरणिव्वाणं । मायासल्लेण तहा ण णिव्वुदिं तवसमिद्धो वि ।। १३७६ ।।
'जध कोडिसमिद्धो वि' यथा कोटिसमृद्धोऽपि शरीरानुप्रविष्टशल्यो न शरीरसुखं लभते । तथा मायाशल्येन न निर्वृत्तिं लभते तपःसमृद्धोऽपि ॥ १३७६ ।।
होदि य वेस्सो अप्पच्चइदो तथ अवमदो य सुजणस्स ।
होदि अचिरेण सत्तू णीयाणवि णियडिदोसेण || १३७८॥
'होदि य वेस्सो' द्व ेष्यो भवत्यप्रत्ययितः तथा सुजनस्यावमतः । वान्धवानामपि शत्रुरचिरेण भवति
मायादोषेण ॥ १३७७॥
पावर दोसं मायाए महल्लं लहु सगावराधेवि ।
सच्चाण सहस्साणि वि माया एक्का वि णासेदि ।। १३७८ ||
'पावदि दोस' प्राप्नोति दोषं महान्तं अल्पापराधोऽपि मायया । एकापि माया सत्यसहस्राणि नाशयति । महादोषप्रापणं सत्यसहस्रविनाशनं च मायादोषी ॥ १३७८ ।।
माया मित्तभेदे कदम्मि इधलोगिगच्छपरिहाणी | णासद मायादोसा विसजुददुद्धंव सामण्णं || १३७९।।
गा०—– सगर चक्रवर्तीके साठ हजार पुत्र महाबलशाली होते हुए भी मान दोषके कारण मृत्युको प्राप्त हुए | १३७५॥
मानके दोषों का वर्णन पूर्ण हुआ ।
आगे मायाके दोष कहते हैं
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गा० - जैसे एक कोटी धनका स्वामी होने पर भी यदि शरीरमें कीलकाँटा घुसा हो तो शारीरिक सुख नहीं मिलता। उसी प्रकार तपसे समृद्ध होने पर भी यदि अन्तरमें मायारूपी शल्य घुसा है तो मोक्ष लाभ नहीं हो सकता ॥ १३७६ ॥
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गा० - माया दोषसे मनुष्य सबके द्वेषका पात्र होता है, उसका कोई विश्वास नहीं करता । सुजन भी उसका अपमान करते हैं । वह शीघ्र ही अपने बन्धु बान्धवोंका भी शत्रु बन जाता है ॥१३७७॥
गा० - अपने द्वारा थोड़ा सा अपराध होने पर भी मायाचारी महान् दोषका भागी बनता है । एक बारका भी मायाचार हजारों सत्योंको नष्ट कर देता है इस प्रकार महादोषका भागी होना और हजार सत्योंका विनाश ये मायाके दोष हैं ।। १३७८ ॥
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