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विजयोदया टीका
८६७ असदि तणे चुण्णेहिं च केसरच्छारिट्टियादिचुण्णेहिं ।
कादम्बोथ ककारो उवरिं हिट्ठा 'तकारो से ।।१९८६॥ 'असदि तणे' प्रतिबिम्बकरणार्थमसति तृणे चूर्णे: पुष्पकेसरैर्वा भस्मना इश्टका चूर्ण उपरि ककार लिखित्वा तस्याधस्तात् 'तकारं कुर्यात् क्त इति लिखेदित्यर्थः ।।१९८६॥ ।
उवगहिदं उवकरणं हवेज्ज जं तत्थ पाडिहरियं तु ।
पडिबोधित्ता सम्म अप्पेदव्वं तयं तेसिं ।।१९८७।। 'उवगहिदं उवकरणं' मृतकशयने यद्गृहीतमुपकरणं वस्त्रकाष्ठादिकं गृहस्थयाञ्चां कृत्वा तत्रोपकरेण यत्प्रतिनिवर्तनीयं वस्त्रादिकं तत्पाडिहारिकमित्युच्यते । तदर्पयितव्यं तेषां गृहस्थानां सम्यक्प्रतिबोध्य ॥१९८७।।
आराधणपत्तीयं काउसग्गं करेदि तो संघो ।
अधिउत्ताए इच्छागारं खवयस्स वसधीए ।।१९८८॥ 'आराधणपत्तीयं' आराधनास्माकमित्येवं यथा स्यादिति संघः कायोत्सर्ग करोति, क्षपकस्य वसतौ अधियुक्तदेवतां प्रति इच्छाकारः कार्यः युष्माकमिच्छया संघोऽत्रासितुमिच्छतीति ॥१९८८।।
सगणत्थे कालगदे खमणमसज्झाइयं च तदिवसं ।
ण ज्झाइ परगणत्थे भयणिज्ज खमणकरणंपि ।।१९८९।। सगणत्थे कालगदे' आत्मीयगणस्थे यतौ कालं गते उपवासः कार्यः स्वाध्यायश्च न कर्तव्यस्तस्मिन
किया है वह चिरकाल तक जीवित रहकर तपस्या करे। यह एक पुतला देनेका विधान है। दो पुतले स्थापित करने पर तीन वार घोषणा करे कि मैंने दूसरा और तीसरा पुतला स्थापित किया है । ये दोनों जिनके बदले में स्थापित किये हैं वे दोनों साधु चिरकाल तक जीवित रहकर तप करें ॥१९८५।।
गा०-यदि पुतला बनानेके लिये तृण न हों तो ईंट पत्थर आदिके चूर्णसे अथवा, केशर, क्षार वगेरहसे ऊपर ककार लिखकर उसके नीचे तकार लिखे। इस प्रकार 'क्त' अक्षर लिखे ॥१९८६॥
गा०-टी०-मृतकको शय्याके निर्माणके लिये गृहस्थोंसे जो वस्त्र काष्ठ आदि लिया गया हो, उनमेंसे जो लौटा देने योग्य हो उसे पाडिहारिक कहते हैं। उस पाडिहारिकको गृहस्थोंको सम्यक् रोतिसे समझा बुझाकर लौटा देना चाहिये ।।१९८७॥
गा०-हमें भी इसी प्रकार आराधनाकी प्राप्ति हो इस भावनासे संघ एक कायोत्सर्ग करे । तथा क्षपककी वसतिकाकी जो अधिष्ठात्री देवता हो उसके प्रति इच्छाकार करे कि आपकी इच्छासे संघ इस स्थानपर बैठना चाहता है ॥१९८८।।
गा०-टी०-अपने संघके साधुका स्वर्गवास होनेपर उस दिन उपवास करना चाहिये और
१-२. य कारो आ० मु० । ३. त काय इति -आ० मु० । ४, सज्झाइ -मु० ।
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