Book Title: Bhagavati Aradhana
Author(s): Shivarya Acharya
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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८९२
भगवती आराधना
_ 'तो सो खीणकसाओ जायदि' ततः सूक्ष्मसंपरायत्वादनंतरं 'खोणकसाओ जायदि' क्षीणकषायो जायते । 'खोणासु लोभकिट्टीसु' संज्वलनलोभसूक्ष्मकृष्टिषु क्षीणासु । 'तो' ततः 'एकत्तवित्तक्कावीचारझाणं तो झादि' एकत्ववितर्कावीचारं ध्यानं ध्याति ॥२०९३।।।
झाणेण य तेण अधक्खादेण य संजमेण घादेदि। .
सेसा घादिकम्माणि 'समं अवरंजणाणि तदो ॥२०९४॥ 'झाणेण य तेण' तेन ध्यानेन । 'तो' तेनैकत्ववितर्काविचारेण यथाख्यातेन चारित्रेण शेषघातिकर्माणि समकालमेव क्षपयति । 'अवरंजणाणि' जीवस्यान्यथाभावकारणानि ॥२०९४।।
मत्थयसूचीए जघा हदाए कसिणो हदो भवदि तालो ।
कम्माणि तधा गच्छंति खयं मोहे हदे कसिणे ॥२०९५॥ 'मत्थयसूचीए जघा हदाए' मस्तकसूच्यां यथा हतायां । 'कसिणो तालो हदो भवति' कृत्स्नस्तालद्रुमो हतो भवति । 'कम्माणि तधा' कर्माण्यपि तथैव ‘खयं गच्छंति' क्षयमुपयांति । 'मोहे हदे कसिणे' मोहे हते कृस्ने ॥२०९५॥
णिद्दापचलाय दुवे दुचरिमसमयम्मि तस्स खीयांत ।
सेसाणि घादिकम्माणि चरिमसमयम्मि खीयंति ।।२०९६।। "णिद्दा पचला य दुवे' निद्राप्रचला च द्वे तस्य क्षीणकषायस्य उपांत्यसमये नश्यतः । 'सेसाणि घादिकम्माणि' अवशिष्टानि घातिकर्माणि त्रीणि तस्य चरमसमये नश्यंति, पंच ज्ञानावरणानि, चत्वारि दर्शनावरणानि, पंचांतरायाश्च ॥२०९६॥
. तत्तो णंतरसमए उप्पज्जदि सव्वपज्जयणिबंधं । ।
केवलणाणं सुद्धं तध केवलदसणं चेव ।।२०९७।।
MAMA
गा०—सूक्ष्म लोभकृष्टिका क्षय होनेपर सूक्ष्म साम्परायके पश्चात् क्षीण कषाय नामक बारहवें गुणस्थानवर्ती होता है। वहाँ वह एकत्व वितर्क विचार नामक ध्यानको ध्याता है ।।२०९३।।
गा०-उस ध्यान तथा यथाख्यात चारित्रके द्वारा वह जीवके अन्यथाभावमें कारण शेष घातिकर्मोंका एक साथ क्षय करता है ।।२०९४।।
गा०-जैसे ताड़के वृक्षकी मस् क सूची, ऊपरका शाग्वाभार टूट जानेपर समस्त ताड़वृक्ष ही नष्ट हो जाता है वैसे ही समस्त मोहनीय कर्मके नष्ट होनेपर कर्म नष्ट हो जाते हैं ॥२०९५||
गा०—उस क्षीणकषाय गुणस्थानके उपान्त्य समयमें निद्रा प्रचला नष्ट होती हैं। और शेष घातिकर्म-पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पांच अन्तराय अन्तिम समयमें नष्ट होते हैं ।।२०९६॥
१. समयमव-मु०, मूलारा० ।
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