Book Title: Bhagavati Aradhana
Author(s): Shivarya Acharya
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 937
________________ ८७० भगवती आराधना निर्यापकस्तवनमुत्तरं ते वि य महाणुभावा धण्णा जेहिं च तस्स खवयस्स । सव्वादरसत्तीए उवविहिदाराधणा सयला ॥१९९८।। 'ते वि य महाणुभावा' तेऽपि च महाभागा धन्या यस्तथा तस्य क्षपकस्य सर्वादरेण शक्त्या च सकलाराधना उपविहिता ॥१९९८॥ निर्यापकानां फलमाचष्टे जो उवविधेदि सव्वादरेण आराधणं खु अण्णस्स । संपज्जदि णिविग्धा सयला आराधणा तस्स ।।१९९९।। 'जो उवविधेदि' यो ढोकयति सर्वादरेण अन्यस्याराधना तस्य आराधना सकला निर्विघ्ना संपद्यते ॥१९९९।। ये क्षपकप्रेक्षणाय यान्ति तानपि स्तौति ते वि कदत्था धण्णा य हुँति जे पावकम्ममलहरणे । पहायति खवयतित्थे सव्वादरभत्तिसंजुत्ता ।।२०००। 'ते पिकवत्था' तेऽपि कृतार्थाः धन्याश्च भवन्ति ये क्षपकतीर्थे पापकर्ममलापहरणे सर्वादराभियुक्ताः स्नान्ति ॥२०००। क्षपकस्य तीर्थतां व्याचष्टे गिरिणदियादिपदेसा तित्थाणि तवोधणेहिं जदि उसिदा । तित्थं कधं ण हुज्जो तवगुणरासी सयं खवउ ।॥२००१।। आगे निर्यापकको प्रशंसा करते हैं गाल-वे महानुभाव भी धन्य हैं जिन्होंने सम्पूर्ण आदर और शक्तिसे उस क्षपककी आराधना सम्पन्न की ||१९९८॥ निर्यापकोंको प्राप्त होनेवाले फलको कहते हैं गा०-जो निर्यापक सम्पूर्ण आदरके साथ अन्यकी आराधना कराता है-उसको समस्त आराधना निर्विघ्न पूर्ण होती है ।।१९९९।। जो क्षपकको देखने जाते हैं उनकी भी प्रशंसा करते हैं गा०-टी०-क्षपक एक तीर्थ हैं क्योंकि संसारसे पार उतारनेमें निमित्त है। उसमें स्नान करनेसे पापकर्म रूपी मल दूर होता है। अतः जो दर्शक समस्त आदर भक्तिके साथ उस महातीर्थमें स्नान करते है वे भी कृतकृत्य होते हैं तथा वे भी सौभाग्यशाली हैं ।।२०००। क्षपकके तीर्थ होनेका समर्थन करते हैं गा०-यदि तपस्वियोंके द्वारा सेवित पहाड़ नदी आदि प्रदेश तोर्थ होते हैं तो तपस्यारूप गुणोंकी राशि क्षपक स्वयं तीर्थ क्यों नहीं है ॥२००१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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