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भगवती आराधना एसा भत्तपइण्णा वाससमासेण वण्णिदा विधिणा ।
इत्तो इंगिणिमरणं वाससमासेण वण्णेसिं ॥२०२३।। 'एसा भत्तपदिण्णा' एतद्भक्तप्रत्याख्यानं व्यासेन संक्षेपेण च वणितं । अत ऊद्धर्व सांन्यासिकमिगिणीमरणं व्याससमासाभ्यां वर्णयिष्यामि ॥२०२३॥
जो भत्तपदिण्णाए उवक्कमो वण्णिदो सवित्थारो ।
सो चेव जधाजोग्गं उवक्कमो इंगिणीए वि ॥२०२४ । 'जो भत्तपदिण्णाए' यो भक्तप्रत्याख्यानस्य उपक्रमो व्यावर्णितः सविस्तारः स एव यथासंभवमुपक्रमो इंगिणीमरणेऽपि ॥२०२४॥
पव्वज्जाए सुद्धो उवसंपज्जित्तु लिंगकप्पं च ।
पवयणमोगाहित्ता विणयसमाधीए विहरित्ता ॥२०२५।। 'पव्वज्जाए सुद्धों' प्रव्रज्यायां शुद्धो दीक्षाग्रहणयोग्य इत्यर्थः । एतेन अर्हता निरूपिता । 'उवसंपज्जित्त' प्रतिपद्य । लिंगकप्पं च' योग्यं लिङ्ग लिगं' इत्यनेन सूचितम् । 'पवयणमोगाहित्ता' श्रु तमवगाह्य एतेन शिक्षा उपन्यस्ता । 'विणयसमाधोए विहरित्ता' विनयसमाधौ विहृत्य ।।२०२५।।
णिप्पादित्ता सगणं इंगिणिविधिसाधणाए परिणमिया ।
सिदिमारुहित्तु भाविय अप्पाणं सल्लिहिताणं ।।२०२६।। 'णिप्पादित्ता सगणं' योग्यं कृत्वा स्वगणं । इंगिणीविधिसाधनाय परिणतो भूत्वा, सिदिमारुहित्त' परिणामश्रेणिमारुह्य । 'भाविय' भावनां प्रतिपद्य । 'अप्पाणं सल्लिहिताणं' आत्मानं संलेख्य ॥२०२६॥
गा०-इस भक्तप्रत्याख्यानका विस्तार और संक्षेपसे विधिपूर्वक कथन किया। आगे इगिनीमरण का विस्तार और संक्षेपसे वर्णन करेंगे ॥२०२३।।
गा०-जो भक्त प्रत्याख्यानकी विधि विस्तारसे कही है वही विधि इंगिनीमरणको यथायोग्य जाननी चाहिये ॥२०२४॥
वही विधि कहते हैं
गा-जो दीक्षा ग्रहणके योग्य है वह निर्ग्रन्थ लिंग धारण करके श्रुतका अभ्यास करे तथा विनय और समाधिमें विहार करे ।।२०२५।।
विशेषार्थ-दीक्षा ग्रहण योग्यसे अर्हत्ताका कथन किया है, लिंगसे लिंगकी सूचना की है। और श्रुताभ्याससे शिक्षाका ग्रहण किया है। इस प्रकार भक्तप्रत्याख्यानमें जो कहा था उसीको यहाँ कहा है ॥२०२५।।
गा०-अपने संघको इंगिणीमरणकी विधिकी साधनामें योग्य करके अपने चित्तमें यह निश्चय करे कि मैं इंगिणीमरणको साधना करूंगा। फिर शुभ परिणामोंकी श्रेणि पर आरोहण करके तप आदिकी भावना करे और अपने शरीर और कषायोंको कृश करे ।।२०२६।।
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