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भगवती आराधना सहसा चुक्करकलिदे णिसीधियादीसु मिच्छकारे सो।
आसिअणिसीधियाओ णिग्गमणपवेसणे कुणइ ॥२५००। 'सहसा चुक्करकलिदे' सहसा स्खलने जाते मिथ्या मया कृतमिति ब्रवीति, निष्क्रमणप्रवेशयोः आसिकानिषीधिकाशब्दप्रयोगं करोति ।।२०५०॥
पादे कंटयमादि अच्छिम्मि रजादियं जदावेज्ज ।
गच्छदि अघाविधिं सो परणीहरणे य 'तुण्हिक्कों ॥२०५१।। ‘पादे कंटयमादि' पादयोः कंटकप्रवेशे नेत्रयोः रजःप्रभृतिप्रवेशेऽपि तूष्णीमास्ते, परनिराकरणेऽपि स तूष्णीमास्ते ॥२०५१॥
वेउव्वणमाहारयचारणखीरासवादिलद्धीसु ।
तवसा उप्पण्णासु वि विरागभावेण सेवदि सो ॥२०५२।। 'वेउव्वणमाहारय' विक्रियाऋद्धौ आहारकऋद्धौ चारणऋद्धो क्षीरास्रवादिलब्धिषु वा तपसोत्पन्नास्वपि विरागतया न किंचित्सेवते सः ॥२०५२॥
मोणाभिग्गहणिरदो रोगादंकादिवेदणाहेदु ।
ण कुणदि पडिकारं सो तहेव तण्हाछुहादीणं ॥२०५३।। 'मोणाभिग्गहणिरदो' मौनव्रतोपपन्नः रोगातङ्कादिवेदनानिमित्तं प्रतीकारं न करोति तथैव तृडादीनामपि ॥२०५३।।
उवएसो पुण आइरियाणं इंगिणिगदो वि छिण्णकघो। देवेहिं माणुसेहिं व पुट्ठो धम्म कधेदित्ति ।।२०५४॥
गा०-यदि उसमें क्वचित् चूक जाते हैं तो 'मेरा दोष मिथ्या हो' 'मैंने गलत किया ऐसा बोलते हैं। तथा बाहर जाने और भीतर प्रवेश करनेपर 'आसही, निसही' शब्दोंका उच्चारण भी करते हैं ॥२०५०॥
गा०-यदि पैरमें काँटा घुस जाता है या आँखमें धूल आदि चली जाती है तो चुप रहते हैं स्वयं उसे दूर नहीं करते । यदि दूसरा दूर करता है तब भी चुप ही रहते हैं ।।२०५१।।
गा०-यदि तपके प्रभावसे उन्हें विक्रिया ऋद्धि, आहारक ऋद्धि या चारण ऋद्धि अथवा क्षीरास्रव आदि ऋद्धियाँ प्रकट होती हैं तो विरागी होनेसे उनका किञ्चित् भी सेवन नहीं करते ॥२०५२॥
गा०-वह मौनका पालन करनेमें लीन रहते है, रोग आदिसे होनेवाले कष्टको दूर करनेका प्रयत्न नहीं करते। इसी प्रकार भूख प्यास आदिका भी प्रतीकार नहीं करते ॥२०५३॥
१. तुसिणीओ -मु० ।
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