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भगवती आराधना भोगाणं परिसंखा सामाइयमतिहिसंविभागो य । पोसहविधि य सव्वो चदुरो सिक्खाउ वृत्ताओ ।।२०७६।। आसुक्कारे मरणे अव्वोच्छिण्णाए जीविदासाए ।
णादीहि वा अमुक्को पच्छिमसल्लेहणमकासी ॥२०७७।। 'आसुक्कारे मरणे' सहसा मरणे अच्छिन्नायां जीविताशायां बन्धुभिर्वा न मुक्तः पश्चिमसल्लेखनामकृत्वा कृतालोचनो निश्शल्यः स्वगृह एव संस्तरमारुह्य देशविरतस्य मृतिर्बालपण्डितमित्युच्यते ॥२०७४-७७॥
आलोचिदणिस्सल्लो सघरे चेवारुहितु संथारं । जदि मदि देसविरदो तं वृत्तं बालपंडिदयं ॥२०७८॥ जो भत्तपदिण्णाए उवक्कमो वित्थरेण णिहिट्ठो। सो चेव बालपंडिदमरणे णेओ जहाजोग्गो ।।२०७१।। वेमाणिएसु कप्पोवगेसु णियमेण तस्स उववादो। णियमा सिज्झदि उक्कस्सएण वा सत्तमम्मि भवे ॥२०८०॥ इय बालपंडियं होदि मरणमरहंतसासणे दिटुं ।
एत्तो पंडिदपंडिदमरणं वोच्छं समासेण ।।२०८१।। स्पष्टार्था त्रयो गाथाः। बालपंडिदं ।।२०७८-२०८१।।
गा०-भोगपरिमाण, सामायिक, अतिथिसंविभाग और प्रोषधोपवास ये चार शिक्षाव्रत कहे हैं ॥२०७६।।
गा०-सहसा मरण उपस्थित होनेपर, जीवनकी आशा रहनेपर, अथवा परिजनोंके द्वारा मुक्त न किये जानेपर अन्तिम सल्लेखना धारण न करके, अपने दोषोंको आलोचना पूर्वक शल्य रहित होकर अपने घरमें ही संस्तरपर स्थित होकर देशविरत श्रावकके मरणको बालपण्डित मरण कहते हैं ।।२०७७॥
गा०-विधिपूर्वक आलोचना करके, माया मिथ्यात्व और निदान शल्यसे मुक्त होकर
में संस्तरपर आरूढ़ होकर यदि श्रावक देशविरत मरता है तो उसे बालपण्डित मरण कहा है ॥२०५८॥
__ गा०-भक्तप्रत्याख्यानमें जो विधि विस्तारसे कही है वही सब विधि बालपण्डितमरणमें यथायोग्य जानना ॥२०७९॥
गा०-वह श्रावक मरकर नियमसे सौधर्मादि कल्पोपपन्न वैमानिक देवोंमें उत्पन्न होता है और नियमसे अधिक से अधिक सात भवोंमें मुक्त होता है ।।२०८०॥
गा. इस प्रकारके मरणको अरहन्त भगवान्के धर्ममें बालपण्डित कहा है । आगे संक्षेपसे पण्डित पण्डितमरणको कहते हैं ।।२०८१॥
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