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भगवती आराधना सो सल्लेहिददेहो जम्हा पाओवगमणमुवजादि ।
उच्चारादिविकिंचणमवि पत्थि पओगदो तम्हा ॥२०५९।। 'सो सल्लेहिददेहो' स सम्यक्तनूकृतशरीरो यस्मात्प्रायोपगमनमुपयाति तस्मादुच्चारादिनिराकरणमपि नास्ति प्रयोगतः ॥२०५९।।
पुढवी आऊतेऊवणप्फदितसेसु जदि वि साहरिदो ।
वोसचत्तदेहो अधाउगं पालए तत्थ ।।२०६०॥ 'पुढवी आऊतेऊवणप्फदितसेसु जवि वि साहरिदो' पृथिव्यादिषु जीवनिकायेषु यद्यपि केनचिदाकृष्टस्तथापि व्युत्सृष्टशरीरसंस्कारस्त्यक्तदेहः स्वमायुः पालयेत् ।।२०६०॥
मज्जणयगंधपुप्फोवयारपडिचारणे वि कीरंते ।
वोसट्टचत्तदेहो अघाउगं पालए तघवि ।।२०६१॥ 'मज्जणयगंधपुप्फोवयारपडिचारणे वि कोरंतो' यद्यपि कश्चिदभिषेचयेत् गन्धपुष्पादिभिर्वा संस्तुयात् तथापि व्युत्सृष्टत्यक्तशरीरो न रुष्यति न तुष्यति न निवारयति ॥२०६१।।
वोसट्टचत्तदेहो दुणिक्खिवेज्जो जहिं जघा अंगं ।
जावज्जीवं तु सयं तहिं तमंगं ण चालेदि ॥२०६२।।। 'वोसट्टचत्तदेहो' व्यत्सृष्टत्यक्तशरीरो निक्षिपेत् कश्चिदन्यस्मिन्यथाङ्गं यावज्जीवं स्वयं तस्मिस्तदङ्ग न वालयति ॥२०६२॥
एवं णिप्पडियम्म भणंति पाओवगमणमरहंता ।
णियमा अणिहारं तं सिया य णीहारमुवसग्गे ।।२०६३।। प्रायोपगमनमें अपनी सेवा न स्वयं करता है और न दूसरोंसे कराता हैं। यही इन तीनोंमें भेद है ।।२०५८॥
गा०-यतः जो अपने शरीरको सम्यकपसे कृश करता है अर्थात् अस्थि चर्ममात्र शेष रहता है वही प्रायोपगमन मरण करता है। अत: मल मूत्रके स्वयं या दूसरेके द्वारा त्याग करानेका प्रश्न ही नहीं रहता ।।२०५९||
गा०-यदि कोई उन्हें पृथ्वी, जल, तेज, वनस्पति और त्रस आदि जीवनिकायोंमें फेंक देता है तो शरीरसे ममत्व त्यागकर अपनी आयुके समाप्त होने तक वहीं पड़े रहते हैं ।।२०६०॥ · गाoयदि कोई उनका अभिषेक करे या गन्ध पुष्प आदिसे पूजा करे तब भी शरीरसे ममत्व त्यागकर न रोष करते हैं, न प्रसन्न होते हैं और न उसे ऐसा करनेसे रोकते हैं ॥२०६१||
गा०-शरीरसे ममत्वका त्याग करने वाला वह प्रायोपगमनका धारी क्षपक जिस क्षेत्रमें जिस प्रकारसे शरीरका कोई अंग रखा गया हो, उसको वैसा ही पड़ा रहने देता है, स्वयं अपने अंगको हिलाता डुलाता नहीं है ॥२०६२॥
गा०-इस प्रकार अरहंतदेव प्रायोपगमनको स्व और परकृत प्रतीकारसे रहित कहते है ।
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