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विजयोदया टोका
८७५ आराधणाविधी जो पुव्वं उववण्णिदो सवित्थारों ।
सो चेव जज्जमाणों एत्थ विही होदि णादव्वो ॥२०१८॥ 'आराधणाविधी' आराधनाया विधेर्यः पूर्व विस्तारो व्यावर्णितः स एवात्रापि युज्यमानो ज्ञातव्यः ॥२०१८॥
एवं आसुक्कारमरणे वि सिझंति केइ धुदकम्मा ।
आराधयित्त केई देवा वेमाणिया होति ॥२०१९।। ‘एवं आसुक्कारमरणे वि' एवं सहसा मरणेऽपि सिध्यन्ति विधुतकर्मसंहतयः । केचिदाराध्य वैमानिका देवा भवन्ति ।।२०१९॥
आराधणाए तत्थ दु कालस्स बहुत्तणं ण हु पमाणं ।
बहवो मुहुत्तमत्ता संसारमहण्णवं तिण्णा ।।२०२०॥ कथमल्पेन कालेन निर्वृतिर्मान्येत्याशङ्का न कार्यति वदति-'आराधणाए तत्थ दु"तस्यामाराधनायां कालस्य बहुत्वं न प्रमाणं । वहवो मुहूर्तमात्रेणाराध्य संसारमहार्णवं तीर्णाः ॥२०२०॥
खणमेत्तेण अणादियमिच्छादिट्ठी वि वद्धणो राया।
उसहस्स पादमूले संबुज्झित्ता गदो सिद्धिं ।।२०२१।। 'खणमेत्तेण' क्षणमात्रेणानादिमिथ्यादृष्टिरपि वर्द्धननामधेयो राजा ऋषभस्य पादमूले संबुद्धो गतः सिद्धि ॥२०२१॥
'सोलसतित्थयराणं तित्थप्पण्णस्स पढमदिवसम्मि ।
सामण्णणाणसिद्धी भिण्णमुहुत्तेण संपण्णा ॥२०२२।। परमणिरुद्ध ॥२०२२॥
गा०-पूर्वमें जो आराधनाकी विधि विस्तार पूर्वक कही हैं वही यहाँ भी यथायोग्य जामना ॥२०१८॥
गा०-इस प्रकार सहसा मरण होनेपर भी कोई-कोई मुनि कर्मोंको नाश करके मुक्त होते हैं और कोई आराधना करके वैमानिक देव होते हैं ॥२०१९।।
गा०-थोड़े ही समयमें मोक्ष कैसे हो सकता है ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये; क्योंकि आराधनामें कालका बहुतपना प्रमाण नहीं है। बहुतसे मुनि एक मुहूर्त मात्रमें आराधना करके संसारसमुद्रको पार कर गये हैं ॥२०२०॥
गा०-अनादि मिथ्यादृष्टि भी वर्द्धन नामका राजा. भगवान् ऋषभदेवके पादमूलमें बोध को प्राप्त होकर मोक्षको गया ॥२०२१॥
____ गा०-भगवान् ऋषभदेवसे शान्तिनाथ तीर्थकर पर्यन्त सोलह तीर्थकरोंके तीर्थकी उत्पत्ति होनेके प्रथम दिन ही बहुतसे साधु दीक्षा लेकर एक अन्तमुहूर्तमें केवलज्ञानको प्राप्तकर मुक्त हए ॥२०२२॥
१. एतां टीकाकारो नेच्छति । ११०
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