Book Title: Bhagavati Aradhana
Author(s): Shivarya Acharya
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 932
________________ ८६५ विजयोदया टीका असमत्वे दोषमाचष्टे जदि विसमो संथारो उवरि मज्झे व होज्ज हेट्ठा वा । मरणं गिलाणयं वा गणिवसभजदीण णायव्वा ॥१९७९।। 'जदि विसमो संथारो' यदि विषमः संस्तर उपरिष्टात् मध्ये अधस्ताद्वा । उपरिवैषम्ये गणिनो मरणं व्याधिर्वा, मध्ये विषमश्चेत् वृषभस्य मरणं व्याधिर्वा, अधस्ताद्विषमत्वे यतीनां मरणं व्याधिर्वा ॥१९७९।। जत्तो दिसाए गामो तत्तो सीसं करित्तु सोवधियं । उट्ट तरक्खण? वोसरिदव्वं सरीरं तं ॥१९८०॥ 'जत्तो दिसाए गामो' यस्यां दिशि ग्रामः ततः शिरः कृत्वा सपिच्छकं शरीरं व्युत्स्रष्टव्यं, उत्थानरक्षणार्थ प्रामादिगम भिमुखतया शिरोरचना ॥१९८०॥ उपकरणस्थापनायां तत्र गुणमाचष्टे जो वि विराघिय दंसणमंते कालं करित्त होज्ज सुरो । सो वि विबुज्झदि ठूण सदेहं सोवधि सज्जो ॥१९८१॥ 'जो वि विराधिय' योऽपि दर्शनं विनाश्यान्ते कालगतस्सुरो भवेत् सोऽपि जानाति सोपकरणं स्वदेहं दृष्ट्वा प्रागहं संयत इति ॥१९८१॥ णत्ता भाए रिक्खे जदि कालगदो सिवं तु 'सव्वेंसिं । एक्को दु समे खेत्ते दिवडढखेत मरंति दुवे ॥१९८२।। संस्तरेके विषम होनेपर दोष कहते हैं गा०-यदि संस्तर ऊपर मध्यमें या नीचे विषम होता है तो ऊपरमें विषम होनेपर आचार्य का मरण या उन्हें रोग होता है। मध्यमें विषम होनेपर एलाचार्यका मरण या उन्हें रोग होता है । और नीचे पैरके पास विषम होनेपर अन्य साधुओंका मरण या उन्हें रोग होता है ।।१९७९।। विशेषार्थ-आशाधर जी ने लिखा है कि उक्त व्याख्यान टीकाकारोंका है। किन्तु टिप्पणकमें कहा है-ऊपरमें विषम होनेपर गणिका मरण होता है। मध्यमें विषम होनेपर एलाचार्यको रोग होता है और नीचेमें विषम होने पर साधुओंको रोग होता है ।।१९७९|| गा०—जिस दिशामें ग्राम हो, उस ओर सिर करके पीछीके साथ उस शवको रख देना चाहिये । शवके उठनेके भयसे उसका सिर गांवकी ओर किया जाता है ॥१९८०।। उपकरण (पीछी) स्थापित करनेके गुण कहते हैं गा०-जो सम्यक्त्वकी विराधना करके मरकर देव होता है वह भी पीछीके साथ अपना शरीर (शव) देखकर ही यह जान लेता है कि मैं भी पूर्वभवमें संयमो था ॥१५८१।। गा०-अल्पनक्षत्रमें यदि क्षपकका मरण होता है तो सबका कल्याण होता है। यदि १. सव्वेहिं -अ० आ० । २. एक्को दु सो मरिज्ज वत्ते दिहधु खित्ते मरिति दुधो -आ० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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