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भगवती आराधना ज्ञानलोचनपांशुवृष्टिस्तपस्तामरसवनस्य हिमानी, दीनताया जननी, परिभवस्य धात्रो, मृतेर्दूतो, भीतेः प्रियसखी या जरा सा वर्तते । 'रुवंपिणासदि लहू" रूपमपि विलासिनीकटाक्षेक्षणशरशततूणीरायमाणं, चेतोवलक्षसूक्ष्मवसनरञ्जने कौसुम्भरसायमानं, प्रीतिलतिकाया मूलं, सौभाग्यतरुफलं, कूलं पूज्यताया यदूपं तल्लघु विनश्यति ।। किमिव ? 'जलेव लिहिदेल्लगं रूवं' जले लिखितरूपमिव ॥१७१९॥
तेओ वि इंदघणुतेजसण्णिहो होइ सव्वजीवाणं ।
दिट्ठपणट्ठा बुद्धी वि होइ उक्काव जीवाणं ॥१७२०॥ 'तेजोवि इवषणुतेजसण्णिहो' शरीरस्य तेजोपि पौल.मीप्रियतमचापस्य तेज इव गर्जेज्जननयनचेतःप्रमोदादायि क्षणेन क्षयमुपव्रजति । 'विठ्ठपणट्ठा दृष्टप्रणष्टा 'बुद्धि वि' सकलवस्तुयाथात्म्यावकुण्ठ'ज्ञाज्ञानतमःपटलपाटनपटीयसी, विचित्रदुःखग्राहकदम्बकाकीर्णकुगतिविशालनिम्नगाप्रवेशनिवारणोद्यता, चारित्रनिधिप्रकटनक्षमादीपतिः, सकलसम्पदाकर्षणविद्या शिवगतिनायिकासंफली एवंभूता बुद्धिरप्युल्केवाशु नाशमुपयाति ॥१७२०॥
अदिवडइ बलं खिप्पं रूवं धूलीकदंबरछाए ।
वीचीव अधुवं वीरियंपि लोगम्मि जीवाणं ॥१७२१।। 'अतिवडइ बलं खिप्पं' क्षिप्रमतिपतति बलं 'रूवं धूलोकदंबरछाए' रथ्यायां पांशुरचितरूपमिव । आनेपर बुढ़ापा बढ़ता जाता है। यह बुढ़ापा सुन्दरतारूपी कोमल पत्तोंके लिये वनकी आगकी लपटके समान है। सौभाग्यरूपी पुष्पोंके लिये ओलोंकी वर्षाके समान है। तारुण्यरूपी हरिणोंकी पंक्तिके लिये व्याघ्रके समान है । ज्ञानरूपी नेत्रके लिये धूलकी वर्षाके समान है । तपरूपी कमलोंके वनके लिये बर्फ गिरनेके समान है । अर्थात् वृद्धावस्थाके आनेपर सुन्दरता, सुभगता, तारुण्य, ज्ञान और तप सब क्षीण हो जाते हैं। यह वृद्धावस्था दीनताकी माता है, तिरस्कारकी धाय है, मृत्युकी दूती है और भयकी प्रिय सखी है। तथा जलमें लिखे हुए रूपके समान रूप भी शीघ्र नष्ट हो जाता है। यह रूप सुन्दर स्त्रियोंके कटाक्षरूपी सैकड़ों बाणोंके लिये तूणीरके समान है अर्थात् पुरुषके रूपको देखकर स्त्रियाँ उसपर कटाक्षबाण चलाती हैं। चित्तरूपी सूक्ष्मवस्त्रको रंगनेके लिये कुसुम्भके रंगके समान है। प्रीतिरूपी लताका मूल है । सौभाग्यरूपी वृक्षका फल है। पूज्यताका किनारा हैं । ऐसा रूप भी शीघ्र नष्ट हो जाता है ।।१७१९॥
गा०-टी-शरीरका तेज भी इन्द्र धनुषके तेजके समान है। जैसे इन्द्रधनुषकी कान्ति मनुष्योंके नेत्रों और चित्तको आनन्दकारी होती है किन्तु क्षणभरमें नष्ट हो जाती है वही दशा शरीरकी कान्तिकी भी है। जो बुद्धि समस्त वस्तुओंके यथार्थस्वरूपको ढांकनेवाले अज्ञानरूपी अन्धकारके पटलको नष्ट करने में अतिशय दक्ष है, विचित्र दुःखरूपी मगरमच्छोंके समूहसे व्याप्त कुगतिरूपी विशाल नदीमें प्रवेश करनेसे रोकने में तत्पर है, चारित्ररूपी निधिको प्रकट करने में दीपककी बत्तीके समान है, समस्त सम्पदाओंको लानेवाली विद्यातुल्य है और मोक्षगतिरूपी नायिकाकी सखी है, ऐसी बुद्धि भी शीघ्र ही नष्ट हो जाती है ॥१७२०॥ · गा०-जैसे मार्गमें धूलीसे रचा गया आकार शीघ्र नष्ट हो जाता है वैसे ही जीवोंका १. कुंठनाज्ञान-आ० ।
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