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विजयोदया टीका
मनुजानाम् । 'एक्को चेव सुभो' एक एव शुभः पुनः । सव्वसुखायरो धम्मो सर्वेषां सौख्यानामाकरो धर्मः ॥ १८०७ ॥
अर्थस्याशुभतां व्याचष्टे -
इहलोगियपरलोगियदोसे पुरिसस्स आवहइ णिच्चं । अत्थो अणत्थमूलं महाभयं मुत्तिपडिपंथी || १८०८||
'इहलोगियपरलोगियबोसे' ऐहिकान् पारलौकिकांश्च दोषान् । 'पुरिसस्स आवहइ णिच्चं पुरुषस्य आवहति नित्यं । ' अत्यो अणत्थमूलं' अर्थोऽनर्थानां मूलं, 'महाभयं' महतो भयस्य मूलत्वान्महाभयं । 'मुत्तिपडिपंथो' मुक्तेरर्गलीभूतः ॥ १८०८ ||
कामस्याशुभतम्तामाचष्टे
कुणिमकुडिभवा लहुगत्तकारया अप्पकालिया कामा ।
उवघो लोए दुक्खावहा य ण य हुंति ते सुलहा || १८०९ ।।
८०७
'कुणिमकुडिभवा लहूगत्तकारया' अशुचिकुटिभवाः लघुत्वकारिणः । 'अप्पकालिया कामा' अल्पकालेषु भवाः कामाः । 'उवधो लोए' लोकद्वये दुःखावहाश्च । ण य होंति ते सुलभा : ' नैव ते सुलभा भवन्ति ॥ १८०९ ॥
कामाशुभत्वमाख्याति -
अट्ठिदलिया छिरावक्कवद्धिया मंसमट्टियालित्ता । बहुकुणिमभण्डभरिदा विहिंसणिज्जा खु कुणिमकुडी || १८१०||
'अट्ठिवलिया' अस्थिदलनिष्पन्ना । 'छिरावक्कवद्धिया' शिरावत्कलवद्धा । 'मंसमट्टियालित्ता' मांस
अर्थकी अशुभता बतलाते हैं
गा० - टी०-धन सब अनर्थोंकी जड़ है । यह पुरुषमें इस लोक और परलोक सम्बन्धी दोष लाता है अर्थात् धन पाकर मनुष्य व्यसनोंमें फँस जाता है और उससे वह इस लोक में भी निन्दाका पात्र होता है और परलोकमें भी कष्ट उठाता है । मृत्यु आदि महान् भयोंका मूल होनेसे धन महाभय रूप है । और मोक्षमार्गके लिये तो अर्गला है । धनमें मस्त मनुष्य मोक्षकी बात भी सुनना नहीं चाहता || १८०८||
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अब कामकी अशुभता बतलाते हैं
गा० - यह कामभोग अपवित्र अपने और परके शरीर के संयोग से पैदा होता है । यह मनुष्यको गिराता है, उसे लोगोंकी दृष्टि में लघु करता है । यह अल्पकालके लिये होता है तथा दोनों ही लोकोंमें दुःखदायी है । तथा सुलभ भी नहीं है || १८०९||
अब शरीरकी अशुचिता कहते हैं
गा०- यह शरीर रूपी कुटी हड्डी रूपी पत्तोंसे वनी है । सिराएँ रूपी बल्कल (छाल) से
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