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विजयोदया टीका
८१९ 'इंदियदुइतस्सा' इन्द्रियदुर्दान्ताश्वाः । "णिग्घिप्पंति' निगृह्यन्ते निरुध्यन्ते । केन ? 'दमणाणखलिणेहि दमप्रधानानि दमज्ञानानि, तान्येव खलिनानि तैः । शब्दादिषु वर्तमानानि इन्द्रियज्ञानानि रागद्वेषमूलानि तानीहेन्द्रियशब्देनोच्यन्ते । तेषां चास्रवानां निरोधस्तत्त्वज्ञानभावनया भवति । द्वयो रूपयोर्युगपदेकस्मिन्नात्मन्यप्रवृत्तः । 'उप्पथगामी' उन्मार्गयायिनः । 'जह तुरगा णिग्धिप्पंति' यथाश्वा निगृह्यन्ते । 'खलिणेहि' खरैः खलिनः ॥१८३१॥
अणिहुदमणसा इंदियसप्पाणि णिगेण्हिदुं ण तीरंति ।
विज्जामंतोसधहीणेण व आसीविसा सप्पा ॥१८३२।। 'अणिहदमणसा' ज्ञानेन अनिभृतचेतसा । 'इंदियसप्पाई' इन्द्रियसर्पाः। 'णिगिण्हे,' निग्रहीतुं । 'ण तीरंति' न शक्यन्ते । “विज्जामंतोसहोहोणेण व विद्यया मन्त्रेण औषधेन वा हीनेन, 'आसोविसा सप्पा' आशीविषाः सर्पा यथा न गृह्यन्ते ॥१८३२॥
प्रमादसंवरं कथयत्युत्तरगाथा
पावपयोगासवदारणिरोधो अप्पमादफलिगेण ।
कीरइ फलिगेण जहा णावाए जलासवणिरोधो ।।१८३३।। 'पावपयोगासवदारणिरोधों' अशुभपरिणामास्रवद्वारनिरोधः। विकथादयः पञ्चदशप्रमादपरिणामाः 'पावपयोगा' इत्युच्यन्ते । तेषां निरोधः 'अप्पमादफलगेण' अप्रमादफलकेन । केन फलकेन कः 'प्रमाद उच्यते सत्यासत्यमृषाभाषा विकथा निरुणद्धि, स्वाध्यायो ध्यानं एकाग्रतेति चेति एते प्रमादविकथाप्रतिपक्षभूताः।
मिथ्यात्व और कषायके संवरका कथन करके इन्द्रिय संवर कहते हैं
गा०-टी०-जैसे कुमार्गमें जानेवाले दुष्ट घोड़ोंको कठोर लगामके द्वारा वशमें किया जाता है। वैसे ही दमप्रधान ज्ञानके द्वारा इन्द्रियरूपी दुर्दान्त घोड़ोंको वश में किया जाता है। यहाँ इन्द्रिय शब्दसे शब्द आदि विषयोंमें प्रवर्तमान इन्द्रिय ज्ञानको कहा है जिसका मूल राग और द्वष है। उनसे होनेवाले आस्रवोंका निरोध तत्त्वज्ञानकी भावनासे होता है क्योंकि एक आत्मामें एक साथ दो रूप-तत्त्वज्ञान भी और इन्द्रिय विषयोंमें प्रवृत्ति भी नहीं हो सकते ॥१८३१।।
गा०-जैसे जिसके पास विद्या, मंत्र और औषध नहीं हैं वह सर्पो को वशमें नहीं कर सकता । उसी प्रकार जिसका मन चंचल है वह इन्द्रियरूपी सर्पो को वशमें नहीं कर सकता।।१८३२।।
आगे प्रमादके संवरको कहते हैं
गा०-जैसे लकड़ीके पाटिये से नावमें जलका आना रोका जाता है। वैसे ही अप्रमादरूपी पाटियेसे अशुभ परिणामोंरूपी आस्रव द्वारको रोका जाता है ।।१८३३।।
टो०-किस पाटियेसे किस प्रमादको रोका जाता है यह कहते हैं-सत्य और अनुभयरूप बचन विकथा नामक प्रमादको रोकते हैं। स्वाध्याय, ध्यान, एकाग्रता ये विकथा नामक प्रमादके प्रतिपक्षी हैं। इनमें लगे रहनेसे खोटी कथाका अवसर ही नहीं मिलता। क्षमा, मार्दव, आर्जव
१. दो रुध्यत इत्याह -आ० मु० । १०३
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