________________
विजयोदया टीका
८६१ __ 'एगंता सालोगा' एकांता परैः प्रायेणादृश्या नातिदूरा नात्यासन्ना विस्तीर्णा विध्वस्ता दूरमवगाढा ॥१९६२।।
'अविसुय असुसिर अघसा सा उज्जोवा बहुसमा असिणिद्धा । णिज्जंतुगा अरहिदा अविला य तहा अणाबाधा ॥१९६३॥ जा अवरदक्षिणाए व दक्षिणाए व अहव अबराए ।
वसधीदो 'विरइज्जइ णिसीघिया सा पसत्थत्ति ।।१९६४।। 'जा अवरदक्षिणाए' अपरदक्षिणाशायां, दक्षिणस्यां, अपरस्यां वा दिशि वसतितः निषीधिका प्रशस्ता ।।१९६३।।१९६४।।
सव्वसमाधी पढमाए दक्षिणाए दु भत्तमो सुलभं ।
अवराए सुविहारो होदि य से उवधिलाभो य ॥१९६५।। 'सव्वसमाधी पढमाए' सर्वेषां समाधिर्भवति 'पढमाए' अपरदक्षिणदिगवस्थितायां निषोधिकायां, दक्षिणदिगवस्थितायामाहारः सुलभः । पश्चिमायां सुखविहारः उपकरणलाभश्च ॥१९६५॥
जदि तेसिं वाघादो दट्ठव्वा पुव्वदक्खिणा होइ। __ अवरुत्तरा य पुव्वा उदीचिपुव्वुत्तरा कमसो ॥१९६६॥
'जदि तासि वाघादो' यदि ता निषीधिका न लभ्यन्ते, पूर्वदक्षिणनिषोधिका द्रष्टव्या, अपरोत्तरा वा पूर्वा वा उदीची वा पूर्वोत्तरा वा क्रमेण ॥१९६६॥
निषधाका लक्षण कहते हैं
गा०-निषीधिका एकान्त स्थानमें होना चाहिये जहाँ दूसरे लोग उसे न देख सकते हों। नगर आदिसे न अति दूर और न अति निकट होनी चाहिये। विस्तीर्ण होनी चाहिये । प्रासुक होनी चाहिये तथा अतिदृढ़ होनी चाहिये ।।१९६२।। .
गा०-वह चीटियोंसे रहित होनी चाहिये । अन्दर प्रवेश कराने वाले छिद्रोंसे रहित होनी चाहिये । प्रकाशवालो होनी चाहिये । समभूमि होनी चाहिये। गीली नहीं होनी चाहिये, जन्तु रहित होनी चाहिये। तिरछे छिद्रवाली नहीं होनी चाहिये तथा बाधारहित होनी चाहिये ॥१९६३।।
गा०-तथा वह निषीधिका क्षपकके स्थानसे पश्चिम-दक्षिण दिशामें या दक्षिण दिशामें या पश्चिम दिशामें हो तो उत्तम होती है ॥१९६४॥
गा०-यदि निषीधिका पश्चिम-दक्षिण दिशामें हो तो सर्व संघको समाधिलाभ होता है। यदि दक्षिण दिशामें हो तो संघको आहार लाभ सुलभ होता है। यदि पश्चिम दिशामें हो तो संघका विहार सुखपूर्वक होता है तथा उपकरणोंका लाभ होता है ॥१९६५॥
गा०-यदि उक्त दिशाओंमें निषीधिका निर्माणमें बाधा हो तो क्रमशः पूर्व दक्षिणमें, पश्चिम-उत्तरमें, पूरबमें या उत्तरमें या पूर्वोत्तर में होना चाहिये ॥९१६६।।
१. एतां टीकाकारो नेच्छति । अतिसुइ-आ०, अभिसुआ-मु० । २. अहरिदा मु० । ३. अचला आ० । ४. उवणिज्जइ आ० वणिजदि -मु०।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org