Book Title: Bhagavati Aradhana
Author(s): Shivarya Acharya
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 929
________________ भगवती आराधना एदासु फलं कमसो जाणेज्ज तुमंतुमा य कलहो य । मेदो य गिलाणं पि य चरिमा पुण कड्ढदे अण्णं ॥१९६७।। 'एवासु' एतासु निषीधिकासु फलं क्रमशो विजानीयात् । 'तुमंतुमा ' पूर्वदक्षिणस्यां स्पर्धा, अपः . त्तरस्यां कलहः, पूर्वस्यां भेदः उदीच्या व्याधिः, पूर्वोत्तरस्यां अन्योन्येनापकृष्यते ॥१९६७।। जं वेलं कालगदो भिक्ख तं वेलमेव णीहरणं । जग्गणबंधणछेदणविधी अवेलाए कादव्वा ।।१९६८।। 'जं वेलं कालगदो भिक्खू तं वेलमेव णीहरणं' यस्यां वेलायां मृतो भिक्षुः तस्यां वेलायामेवापनयनं कर्तव्यं, अवेलायां मृतश्चेत जागरणं बन्धनं छेदनं वा कर्तव्यं ।।१९६८।। के जागरणं कुर्वन्तीत्याचष्टे बाले बुड्ढे सीसे तवस्सिभीरूगिलाणए दुहिदे । आयरिए य विकिचिय धीरा जग्गंति जिदणिद्दा ॥१९६९।। 'बाले बुड्ढे' बालवृद्धान्, शिक्षकान्, तपस्विनः, भीरून्, व्याधितान्, दुःखितानाचार्यांश्च अपाकृत्य धीरा जितनिद्रा जागरणं कुर्वन्ति ।।१९६९।। के बध्नंतीत्याचष्टे गीदत्था कदकरणा महाबलपरक्कमा महासत्ता । बंधंति य छिंदंति य करचरणंगुट्टयपदेसे ॥१९७०॥ गा-किन्तु पूर्व-दक्षिण दिशामें होनेसे 'मैं ऐसा हूँ, तुम ऐसे हो', इत्यादि रूप संघर्ष होता है। पश्चिमोत्तर दिशामें होनेसे कलह होता है। पूर्व दिशामें होनेसे संघमें भेद पड़ता है। उत्तर दिशामें होनेसे व्याधि होती है। पूर्वोत्तर दिशामें होनेसे परस्परमें खींचातानी होती है। यह क्रमसे उक्त दिशाओंमें निषद्या बनानेका फल है ।।१९६७।। विशेषार्थ-पं० आशाधर जीने अपनी टीकामें लिखा है कि पूर्वोत्तर दिशामें निषद्या करनेसे दूसरे मुनिकी मृत्यु होती है ।।१९६७।। गा०—जिस समय साधु मरे उसी समय उसे वहाँसे हटा देना चाहिये । यदि असमयमें मरा हो तो जागरण, बन्धन या छेदन करना चाहिये ।।१९६८।। जागरण कौन करते हैं यह कहते हैं गाo-वालमुनि, वृद्ध मुनि, शिक्षक मुनि, तपस्वी मुनि, डरपोक मुनि, रोगी मुनि और दुखित हृदय आचार्यो के सिवाय निन्द्रा को जीतनेवाले धीर मुनि जागरण करते हैं ।।१९६९।। बाँधते कौन हैं, यह कहते हैंगा०- जो मुनि गृहीतार्थ होते हैं, जिन्होंने अनेक बार क्षपकोंका कर्म किया है, महाबल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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