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भगवती आराधना 'धूली हुत्तप्पिदा लग्गा' धूली स्नेहाम्यक्तशरीरलग्ना । 'जहा मलो होद' यथा मलं भवति । 'मिच्छत्तादिसिणेहोल्लिदस्स' मिथ्यात्वासंयमकषायपरिणामस्नेहाम्यत्तस्यात्मनः प्रदेशेष्ववस्थितं कर्मप्रायोग्यं द्रव्यं । 'तहा' तथा । 'कम्मं होदि' कर्म भवति । एतदुक्तं भवति-आत्मपरिणामान्मिथ्यात्वादिकात विशिष्टं पुद्गलद्रव्यं कर्मत्वेन परिणमयतीति कर्मत्वपर्यायहेतुरात्मनः परिणाम आस्रव इत्यर्थः ॥१८१७॥
ओगाढगाढणिचिदो पुग्गलदव्वेहिं सन्नदों लोगो।
सुहमेहिं बादरेहिं य दिस्सादिस्सेहिं य तहेव ॥१८१८।। 'भोगाढगाढणिचिदो' अनुप्रवेशगाढं निचितः । 'पुग्गलदहि' पुद्गलद्रव्यः 'सव्वदो लोगो' कात्स्येन लोकः । 'सुहमेहि बादरेंहि य' सूक्ष्मः स्थूलश्च । “विस्सादिस्सेहि' चक्षुषा दृश्यरदृश्यश्च । 'तहेव' तथैव । एतया गाथया कर्मत्वपर्याययोग्यानां पुद्गलद्रव्याणां सर्वत्र लोकाकाशे बहूनामस्तित्वमाख्यातम् ॥१८१८॥ के ते आस्रवा इत्यत्राह
मिच्छत्तं अविरमणं कसाय जोगा य आसवा होति ।
अरहंतवृत्तअत्थेसु विमोहो होइ मिच्छत्तं ॥१८१९।। 'मिच्छत्तं अविरमणं कसायजोगा य आसवा होत' मिथ्यात्वमसंयमः कषाययोगाश्च आस्रवा भवन्ति । आस्रवत्यागच्छन्ति कर्मत्वपर्यायं पुदगला एभिः कारणभूतैरिति मिथ्यात्वादय आम्रवशब्दवाच्याः तेष्वास्रवेषु । मिथ्यात्वस्वरूपं कथयति । 'अरहंतवृत्त अत्थेसु' अर्हदुक्तेषु अनन्तद्रव्यपर्यायात्मकेषु अर्थेषु 'विमोहो मिच्छत्तं होदि' अश्रद्धानं मिथ्यात्वं भवति ॥१८१९॥ असंयममाचष्टे
अविरमणं हिंसादी पंच वि दोसा हवंति णायव्वा । कोधादीया चत्तारि कसाया रागदोसमया ॥१८२०॥
मिथ्यात्व, असंयम और कषायपरिणामरूप तैलसे लिप्त होता है उस आत्माके प्रदेशोंमें स्थित कर्मरूप होनेके योग्य पुद्गलस्कन्ध कर्मरूप हो जाते हैं। इसका आशय यह है, मिथ्यात्व आदि रूप आत्माके परिणामोंसे विशिष्ट पुद्गलद्रव्य कर्मरूपसे परिणमन करता है इसलिये कर्मरूप परिणमनमें कारण आत्माके परिणाम ही आस्रव हैं ॥१८१७।।
गा०-यह लोक सर्वत्र पुद्गल द्रव्योंसे ठसाठस भरा हुआ है। वे पुद्गल सूक्ष्म भी है और बादर भी हैं। चक्षुके द्वारा दिखाई देने योग्य भी हैं और न दिखाई देने योग्य भी हैं।
टो०-इस गाथाके द्वारा कर्मरूप होनेके योग्य पुद्गल द्रव्योंका सर्वत्र लोकाकाशमें अस्तित्व बतलाया है ।।१८१८॥
वे आस्रव कोन हैं यह बतलाते हैं
गा०-मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग ये आस्रव हैं। जिन कारणोंसे पुद्गल कर्मरूप होकर आते हैं उन मिथ्यात्व आदिको आस्रव कहते हैं। उनमेंसे मिथ्यात्वका स्वरूप कहते हैं-अहंन्त भगवान्के द्वारा कहे गये अनन्त द्रव्य पर्यायात्मक पदार्थों में अश्रद्धान करना मिथ्यात्व है ॥१९१९॥
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