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विजयोदया टीका
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परवेशन । 'धम्मोति' धर्म इति । 'इमा' इयं वेदना । 'सवसेण' स्ववशेन सता । 'सोदुण तोरेज्ज' सोढं न शक्यते ?। कथं वेदना धर्म: ? उत्तमक्षमामाजवादवादिभिः दशप्रकारो धर्म उच्यते । वेदनासहनं धर्म इति कृत्वा कथं न शक्यते सोढुं संबन्धोऽत्र ॥१५९९॥
'तण्हा अणंतखुत्तो संसारे तारिसी तुम आसी । जपसमेतुं सव्वोदधीणमुदगं ण तीरेज्ज ॥१६००॥ आसी अणंतखत्तो संसारे ते यावि तारिसिया । जं पसमेतुं सव्वो पुग्गलकाओ ण तीरेज्ज ।।१६०१।। जदि तारिसया तण्डा छुधा य अवसेण ते तदा सोढा । धम्मोत्ति इमा सवसेण कधं सोढुं ण तीरेज्ज ॥१६०२।। सुइपाणएण अणुसहिभोयणेण य पुणोवगहिएण ।
ज्झाणोसहेण तिव्वा वि वेदणा तीरदे सहिदुं ॥१६०३।। 'सुइपाणएण' त्रिविधधर्मकथाश्रुतिपानेन । 'अणुसद्विभोयणेण य' अनुशासनभोजनेन | 'उवगहिदेण' उपगृहीतेन । 'ज्माणोसण' शुभध्यानौषधेन च । 'तिव्वा वि वेदणा' तीव्रापि वेदना । 'तोरदे सहिदुं शक्यते सोढुं ॥१६००॥१६०१॥१६०२॥१६०३॥
भीदो व अभीदो वा णिप्पडियम्मो व सपडियम्मो वा ।
मुच्चइ ण वेदणाए जीवो कम्मे उदिण्ण म्मि ॥१६०४॥ 'भीदो व अभीदो वा' भोतोऽभीतो वा । 'णिप्पडियम्मो सप्पडियम्मो वा' निष्प्रतिकारः सप्रतिकारो वा । 'मुच्चदि ण वेदणाए जीवो' न मुच्यते वेदनाया जीवः । 'कम्मे उदिण्णम्मि' कर्मण्यसद्वेद्ये उदीर्ण ।।१६०४॥
समाधान-उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव आदिके भेदसे दस प्रकारका धर्म कहा है अतः गेदनाको सहना भी धर्म है ॥१५९९||
___ गा०-हे क्षपक ! संसारमें तुम्हें ऐसी प्यासकी वेदना अनन्त बार हुई है जिसको शान्त करनेके लिये सब समुद्रोंका जल भी समर्थ नहीं है ।।१६००।।
___ गा०-संसारमें तुम्हें ऐसी भूखकी वेदना अनन्त बार हुई है जिसको शान्त करनेके लिये समस्त पुद्गल काय भी समर्थ नहीं है ॥१६०१॥
गा०-यदि तुमने परवश होकर वैसी भूख प्यासकी घोर वेदनाको सहा है तो अब धर्म मानकर इस वेदनाको स्वेच्छापूर्वक क्यों नहीं सहते ॥१६०२।।
गा०-तीन प्रकारकी धर्मकथाको कानोंके द्वारा पीकर, तथा गुरुकी शिक्षारूपी भोजन करके और शुभध्यानरूपी औषधको ग्रहण करके तीव्र भी वेदनाको सहा जा सकता है ।।१६०३।।
___गा०–असातावेदनीय कर्मकी उदीरणा होनेपर डरो या न डरो, प्रतीकार करो या न करो, जीव वेदनासे छुटकारा नहीं पाता ॥१६०४।।
१. एतद् गाथात्रयं टीकाकारो नेच्छति । २. पुणो उवक्कमिए,-अ० ।
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