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विजयोदया टोका
७३१ कम्माई बलियाई बलिओ कम्मादु णत्थि कोवि जगे।
सव्वबलाई कम्मं भलेदि हत्थीव णलिणिवणं ॥१६१६॥ 'कम्माई' कर्माणि बलवंति, कर्मभ्यो बलवान्नास्ति जगति । कस्माद्यस्मात्सर्वाणि बंधुविद्याद्रव्यशरीरपरिवारबलानि कर्म मई यति हस्तीव नलिनवनं ॥१६१६॥
इच्चेवं कम्मुदओ अवारणिज्जोत्ति सुट्ठ पाऊण ।
मा दुक्खायसु मणसा कम्मम्मि सगे उदिण्णम्मि ॥१६१७॥ 'इच्चेवं कम्मुदओ' इतिशब्दः प्रक्रांतपरिसमाप्ति सूचयति । एवं इत्युक्तपरामर्श । 'कम्मुदओ' कर्मोदयः । 'अवारणिज्जोत्ति' अनिवार्य इति । 'सुटठ णाउण' सम्यग्ज्ञात्वा । 'मा दुक्खायसु मणसा' मा कार्षीर्दुःखं मनसा । 'कम्मम्मि सगे उदिग्णम्मि' कर्मणि स्वके उदीर्णे ॥१६१७॥
पडिकूविदे विसण्णे रडिदे दुक्खाइदे किलिडे वा ।
ण य वैदणोवसामदि व विसेसो हवदि तिस्से ।।१६१८॥ 'पडिकूविदे' परिदेवने कृते शोके । विषादे रटने, दुःखे, संक्लेशे वा न वेदनोपशाम्यति । नापि कश्चिदतिशयो भवति वेदनायाः ॥१६१८।।
अण्णो वि को वि ण गुणोत्थ संकिलेसेण होइ खवयस्स। .
अटें सुसंकिलेसो ज्झाणं तिरियाउगणिमित्तं ॥१६१९॥ __ 'अण्णो वि को विण गुणोत्थ' अन्योप्यत्र गणो न कश्चिच्छोकादिना संक्लेशेन । प्रेक्षापूर्वकारिणो हि तत्कतुं प्रारंभंते यस्य साध्यं फलं अस्ति । संक्लेशेन न किंचित् अपि ममक्षोः फलं अपि तु संक्लेशपरिणामो ह्यातं ध्यानममनोज्ञविप्रयोगाख्यं तच्च तिर्यगायुषो निमित्तं । ततोऽल्पदुःखभीरुं भवंतं त्वदीयः संक्लेशो दुरुत्तरे तिर्यगावर्ते निपातयतीति भयोपदर्शनं कृतं ॥१६१९॥
गा०-कर्म बड़े बलवान हैं। जगत्में कर्मसे बलवान कोई नहीं है। जैसे हाथी कमलोंके वनको रौंद डालता है। वैसे ही कर्म बन्धु, ज्ञान, द्रव्य, शरीर और परिवार आदि सब बलोंको नष्ट कर देता है । कर्मके सामने ये सब बल क्षीण हो जाते हैं ॥१६१६।।
गा०-इस प्रकार कर्मका उदय अनिवार्य है उसे रोका नहीं जा सकता इस बातको अच्छी तरहसे जानकर अपने कर्मका उदय आनेपर मनमें दुःख मत करो ॥१६१७।।
गा०-रोनेपर, विषाद करनेपर, चिल्लानेपर अथवा दुःख और संक्लेश करनेपर वेदना शान्त नहीं होती और उसमें कोई विशेषता भी नहीं आती ॥१६१८॥
___ गा०टी०-शोक आदि संक्लेश करनेसे क्षपकका कोई अन्य लाभ भी नहीं है। बुद्धिमान पुरुष उसी कार्यको करना प्रारम्भ करते हैं जिससे कोई लाभ होता है । संक्लेशसे मुमुक्षुका जरा भी लाभ नहीं है। बल्कि इष्ट वियोग नामक आर्तध्यान संक्लेश परिणामरूप होनेसे तिर्यञ्चायुके बन्धका कारण है अतः थोड़ेसे दुःखसे डरनेवाले आपको तुम्हारा संवलेश ऐसी तिर्यञ्चुगतिरूपी भँवरमें डाल देगा जिससे निकलना बहुत कठिन है ॥१६१९।।
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