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भगवती आराधना 'सत्तीहिं' शक्तिभिः । 'विमुक्कोहि य' अयोमयकण्टकार्दण्डः । 'अदयाए' दयामन्तरेण । 'खंचिदो' परावर्तितः ॥१५७३।।
पगलंतरुधिरधारो पलंबचम्मो पभिन्नपोट्टसिरो।
पउलिदहिदओ जं फुडिदच्छो पडिचूरियंगो य ।।१५७४॥ 'पगलंतरुधिरधारों' प्रगलद्रुधिरधारः। 'पलंबचम्मो' प्रलम्बत्वक् । 'पभिन्नपोट्टसिरो' प्रभिन्नोदर शिराः । 'पउलिदहिदओ' प्रतप्तहृदयः । 'ज' यत् । 'कुडिदच्छो' स्फुटितलोचनः । 'पडिचूरिदंगो य' परिचूर्णिताङ्गः ॥१५७४॥
जं 'चडवडित्तकरचरणंगो पत्तो सि वेदणं तिव्वं ।
णिरए अणंतखुत्तो तं अणुचिंतेहि णिस्सेसं ॥१५७५।। 'जं' यत् । 'चडवडित्तकरचरणंगो' वेपमानकरचरणाङ्गः । 'पत्तो सि वेदणं तिव्वं' प्राप्तोऽसि वेदनां तीवां । "णिरए' नरके । 'अणंतखुत्तो' अनंतवारं तत् 'अणुचितेहि' अनुक्रमेण चिन्तय । 'णिस्सेसं' निरवशेषं ॥ नरकगतिदुःखं वर्णितम् ॥१५७५।।
तिरियगदि अणुपत्तो भीममहावेदणाउलमपारं ।
जम्मणमरणरहट्ट अणंतखुत्तो परिगदो ज॥१५७६॥ 'तिरियदि अणुपत्तो' तिर्यग्गतिमनुप्राप्तः । 'भीममहावेदनाउलमपारं' । भीममहावेदनाकुलमपारं 'जम्मणमरणरहट्ट' जन्ममरणघटीयंत्रं । 'अणंतखुत्तो' अनंतवारं । 'परिगदो' परिप्राप्तोऽसि । यत् चिंतेहि तं इति वक्ष्यमाणेन संबन्धः । तियंचो हि नानाविधाः पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतित्रसभेदेन ॥१५७६।।
हवा की गई जिससे वेदना बढ़े। फिर शक्ति नामक अस्त्रसे और लोहेके दण्डेसे जिसके आगे कांटे लगे हों, निर्दयतापूर्वक खोंचे गये ॥१५७३।।
गा०–रुधिरकी धार बह रही है, चमड़ा लटक रहा है, उदर और सिर फट गया है, हृदय दुःखसे संतप्त है, आँखें फूट गई हैं। समस्त शरीर छिन्न-भिन्न है ॥१५७४॥
___ गा-हाथ पैर कांपते हैं। ऐसी दशामें तुमने नरकमें जो अनन्त वार तीव्र कष्ट भोगा उस सवका क्रमसे चिन्तन करो ॥१५७५।।
नरकगतिके दुःखका वर्णन समाप्त हुआ।
गा-टी०-नरकसे निकलकर तुम तिर्यञ्चगतिमें आये। यह जन्म मरणरूपी घटीयंत्र (रहट) भयानक महावेदनाओंसे भरा है, इसका पार नहीं है। इसे तुमने अनन्तवार प्राप्त किया है। तिर्यञ्च पृथिवी, जल, तेज, वायु, वनस्पति और त्रसके भेदसे अनेक प्रकारके हैं ॥१५७६।।
१. चडयांत-मु०, मूलारा।
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