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विजयोदया टीका
६६७ 'मायाए' मायया । 'मित्तभेदे' मैत्र्या विनाशे कृते । 'इह लोगिगच्छपरिहाणी' ऐहलौकिककार्यविनाशः । 'णासदि सामण्णं' नश्यति श्रामण्यं । 'मायादोसा' मायाख्य दोषाद्धेतोः । 'विसजुददुद्धव' विषयुतदुग्धमिव । मित्रकार्यविनाशः श्रामण्यहानिश्च मायाजनितदोषौ ॥१३७९।।
माया करेदि णीचागोदं इत्थी णवंसयं तिरियं ।
मायादोसेण य भवसएसु डभिज्जदे बहुसो ॥१३८०॥ 'माया करेदि णीचागोद' माया करोति नीचैर्गोत्रं कर्म । नीचैर्वा गोत्रमस्य जन्मान्तरे। 'इत्यो गवंसयंतिरियं' स्त्रीवेदं, नपुंसकवेदं, तिर्यग्गत्ति च नामकर्म करोति । अथवा स्त्रीत्वं, नपुंसकत्वं, तिर्यक्त्वं वा। 'मायादोसेण' 'मायासंज्ञितेन दोषेण । 'भवसदेसु' जन्मशतेषु । 'डभिज्जदि' वंच्यते । 'बहुसो' बहुशः ॥१३८०॥
कोहो माणो लोहो य जत्थ माया वि तत्थ सण्णिहिदा ।
कोहमदलोहदोसा सव्वे मायाए ते होंति ॥१३८१॥ 'कोधो माणो' क्रोधमानलोभास्तत्र जीवे सन्निहिता यत्र स्थिता माया । क्रोधमानलोभजन्या दोषाः सर्वेऽपि मायावतो भवन्ति ।।१३८१॥
सस्सो य भरघगामस्स सत्तसंवच्छराणि णिस्सेसो ।
दड्डो डंभणदोसेण कुंभकारेण रुद्वेण ॥१३८२॥ 'सस्सो' सस्यं । 'भरधगामस्स' भरतनामधेयग्रामस्य । 'सत्तसंवच्छराणि' वर्षसप्तकं । 'णिस्सेसो बढों निरवशेषं दग्धं । 'डंभणवोसेण' मायादोषेण हेतुना । 'रुद्रुण कुभकारेण' रुष्टेन कुम्भकारेण ॥१३८२॥ मायात्तिगदा। लोभदोषानाचष्टे
लोभेणासाधत्तो पावइ दोसे बहुं कुणदि पावं । णीए अप्पाणं वा लोमेण णरो ण विगणेदि ॥१३८३।।
गा०-मायाचारसे मित्रता नष्ट हो जाती है और उससे इस लोक सम्बन्धी कार्योंका विनाश होता है। तथा मायादोषसे विष मिश्रित दूधकी तरह मुनि धर्म नष्ट हो जाता है। इस प्रकार मित्रता और कार्यका नाश तथा मनि धर्मकी हानि ये मायाके दोष हैं ॥१३७९॥
गा०-टो०-मायासे नीच गोत्र नामक कर्मका बन्ध होता है, जिससे दूसरे जन्ममें नीच कुलमें जन्म होता है। तथा स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और तिर्यश्चगति नाम कर्मका बन्ध करती है। अथवा मायासे स्त्रीपना, नपुंसकपना और तिर्यञ्चपना प्राप्त होता है। मायासे उत्पन्न हुए दोषसे सैकड़ों जन्मोंमें बहुत बार ठगाया जाता है अर्थात् किसीको एक बार ठगनेसे बार-बार ठगा जाता है ॥१३८०॥
गा०-जहाँ मायाचार है वहाँ क्रोध, मान लोभ भी रहते हैं। क्रोध मान और लोभसे . उत्पन्न होने वाले सब दोष मायाचारीमें होते हैं ।।१३८१।।
गा०-मायाचारके दोषसे रुष्ट हुए कुम्भकारने भरत नामक गाँवका धान्य सात वर्ष तक पूर्ण रूपसे जलाया था ॥१३८२॥
१. मायासंजनितेन-मु० ।
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