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भगवतो आराधना
उत्तरगाथा
इंदियकसायदुद्दतस्सा पाडेंति दोसविसमेसु ।
दुःखावहेसु पुरिसे पसढिलणिव्वेदखलिया हु ॥१३९०॥ 'इंदियकसायदुइंतस्सा' इन्द्रियकषायदुर्दान्ताश्वाः । 'पार्डेति' पातयन्ति । 'दोसविसमेसु' पापविषमस्थानेषु । दुक्खावहेसु' दुःखावहेषु । 'पुरिसे' पुरुषान् । 'पसढिलणिव्वेदखलिआ' प्रशिथिलनिवेदखलिनाः॥१३९०॥
इंदियकसायदुद्दतस्सा णिव्वेदखणिलिदा संता ।
ज्झाणकसाए भीदा ण दोसविसमेसु पाडेति ॥१३९१।। 'इंदियकसायदुईतस्सा' इन्द्रियकषायदुर्दान्ततुरङ्गाः वैराग्यखलीननियमिताः सन्तः ध्यानकशासुभीता न दोषविषमेषु पातयन्ति ॥१३९१॥
इंदियकसायपण्णगदट्ठा बहुवेदणुदिदा पुरिसा ।
पन्भट्टझाणसुक्खा संजमजीयं पविजहंति ।।१३९२।। इन्द्रियकषायपन्नगदष्टाः, बहुवेदनावष्टब्धाः पुमांसः प्रभ्रष्टध्यानसुखाः संयमजीवं परित्यजन्ति ॥१३९२॥
ज्झाणागदेंहि इंदियकसायभुजगा विरागमतेहिं ।
णियमिजंता संजमजीयं साहुस्स ण हरंति ॥१३९३।। ध्यानागदैरिन्द्रियकषायभुजगा वैराग्यमन्त्रनियम्यमाणाः साधोः संयमजीवितं न हरन्ति ।।१३९३।।
सुमरणपुंखा चिंतावेगा विसयविसलित्तरइधारा । मणधणुमुक्का इंदियकंडा विंधेति पुरिसमयं ।। १३९४।।
गा०-शत्रु, आग, व्याघ्र और कृष्ण सर्प भी वह बुराई नहीं करता जो बुराई कषायरूपी शत्रु करता है । वह कषायरूप शत्रु मोक्षमें बाधारूप महादोषका कारण है ।।१३८९।।
गा०-इन्द्रिय कषायरूपी घोड़े दुर्दमनीय हैं इनको वशमें करना बहुत कठिन है। वैराग्यरूपी लगामसे ही ये वशमें होते हैं। किन्तु उस लगामके ढीले होनेपर वे पुरुषको दुःखदायी पापरूपी विषम स्थानोंमें गिरा देते हैं ॥१३९०॥
गा०—किन्तु इन्द्रिय कषायरूपी दुर्दमनीय घोड़े जब वैराग्यरूपी लगामसे नियमित होते हैं और ध्यानरूपी कोड़ेसे भयभीत रहते हैं तो विषम पापस्थानमें नहीं गिराते ॥१३९१।।
गा०-इन्द्रिय और कषायरूपी साँसे डसे हुए मनुष्य बहुत कष्टसे पीड़ित होकर, उत्तमध्यानरूपी सुखसे भ्रष्ट हो, संयमरूपी जीवनको त्याग देते हैं ।।१३९२।।
___ गा०—किन्तु इन्द्रिय और कषायरूपी सर्प सम्यग्ध्यानरूपी सिद्ध औषधि और वैराग्यरूपी मंत्रोंसे वशमें होनेपर साधुके संयमरूपी जीवनको नहीं हरते ।।१३९३।।
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