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भगवती आराधना 'मायादोसा' मायादोषाः सर्वेऽपि पूर्वनिर्दिष्टाः । मायायां तपसि स्वशक्तिनिगूहनलक्षणायां भवन्ति कि च धम्मम्मि धर्म तपोलक्षणे। णिप्पिवासस्स अनादरस्य जन्मान्तरे दुर्लभो भवति धर्मः ॥१४५०॥ दोषान्तरमपि निगदति
पुव्वत्ततवगुणाणं चुक्को जं तेण वंचिओ होइ ।
विरियणिगृही बंधदि मायं विरियंतरायं च ॥१४५१।। 'पुष्वृत्ततवगुणाणं' पूर्वोक्तसंवरनिर्जरा चेत्येवमादिभिस्तपःसाध्यरुपकारः। 'चुक्को' च्युतः । 'जं' यस्मात् । तेण' तेन तपःसाध्योपकारप्रच्युतत्वेन । 'वंचिदो होदि' वञ्चितो भवति । विरियणिगूही बंधदि मायं' वीर्यसंवरणपरो बध्नाति मायाकर्म 'विरियंतरायं च' वीर्यान्तरायं च ॥१४५१॥
तवमकरितस्सेदे दोसा अण्णे य होति संतस्स ।
होति य गुणा अणेया सत्तीए तवं कुणंतस्स ॥१४५२॥ 'तवमकरेंतस्स' तपस्यनुद्यतस्येमे दोषा अन्ये च भवन्तीति ज्ञातव्याः । भवन्ति चानेकगुणाः शक्त्या तपसि वर्तमानस्य ॥१४५२॥ तपोगुणप्रख्यापनायोत्तरप्रबन्धः
इह य परत्त य लोए अदिसयपूयाओ लहइ सुतवेण ।
आवज्जिजंति तहा देवा वि सइंदिया तवसा ॥१४५३॥ इह जन्मनि परत्र च तपसा सम्यक् कृतेन अतिशयपूजा. लम्यते । आवय॑न्ते च तपसा देवाः सेन्द्रकाः ॥१४५३॥
अप्पो वि तवो बहुगं कल्लाणं फलइ सुप्पओगकदो । जह अप्पं वडबीअं फलइ वडमणेयपारोहं ॥१४५४॥
गा०-तपमें अपनी शक्तिको छिपाने रूप मायाचार में वे सब दोष होते हैं जो पूर्वमें मायाके दोष कहे हैं । जो धर्ममें अनादर भाव रखता है उसको दूसरे जन्ममें धर्मकी प्राप्ति दुर्लभ होती है ।।१४५०॥
अन्य दोष भी कहते हैं
गा०-पूर्व में जो तपके द्वारा साध्य संवर निर्जरा इत्यादि उपकार कहे हैं उनसे च्युत होने से वह उनसे वंचित होता है। और अपनी शक्तिको छिपानेसे मायाकर्म और वीर्यान्तराय कर्मका बन्ध करता है ।।१४५१॥
गा०-जो तपमें तत्पर नहीं होता उसको ये दोष तथा अन्य दोष होते हैं और जो शक्तिके अनुसार तप करता है उसमें अनेक गुण होते हैं ।।१४५२।। __ आगे तपके गुण कहते हैं
गा०-सम्यकपसे तप करनेसे इस जन्ममें और परजन्ममें सातिशय पूजा प्राप्त होती है । तथा तपसे इन्द्रसहित सब देव भी विनय करते हैं ॥१४५३।।
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