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विजयोदया टोका
५६९ "सिंगारतरंगाए' शृङ्गारतरङ्गया, विलासवेगया, यौवनजलया, विहसितफेनया, नारीनद्या मुनि!ह्यते ॥११०५॥
ते अदिसूरा जे ते विलाससलिलमदिचवलरदिवेगं ।
जोव्वणणईसु तिण्णा ण य गहिया इत्थिगाहेहिं ॥११०६।। __ 'ते अदिसूरा' ते अतिशूराः । ये विलाससलिलामतिचपलरतिवेगां यौवननदीमुत्तीणः, न च गुहीता युवतिग्राहैः ॥११०६।।
महिलावाहविमुक्का विलासपुंक्खा कडक्खदिट्टि मरा ।
जण्ण वधंति सदा विस यवणचरं सो हवइ धण्णो ॥११०७॥ 'महिलावाहविमुक्का' युवतिव्याधविमुक्ताः । विलासपृषत्काः, कटाक्षदृष्टिशराः । यं न घ्नन्ति सदा विषयवने चरन्तं भवति स धन्यः ।।११०७॥
विव्वोगतिक्खदंतो विलास खंधो कडक्कदिविणहो ।
परिहरदि जोवणवणे जमित्थिवग्यो तगो घणो ॥११०८।। "विवोगतिक्खदंतो' विलासखन्धो । विभ्रमतीक्ष्णदन्तो विलासस्कन्धः कटाक्षदृष्टिनखः परिहरति यौवनवने यं युवतिव्याघ्रः स धन्यः ॥११०८॥
तेल्लोक्काड विडहणो कामग्गी विसयरुक्खपज्जलिओ ।
जोव्वणतणिल्लचारी जंण डहइ सो हवइ धण्णो ।।११०९।। गा०--स्त्री एक नदीके समान है। उसमें शृङ्गाररूप तरंगे हैं। विलासरूप वेग है। यौवनरूप जल है तथा मन्द-मन्द हँसना ही झाग है । ऐसी स्त्रीरूपी नदी मुनिको नहीं वहा सकती ||११०५॥
गा०--यह यौवनरूप नदी विलासरूप जलसे पूर्ण है. अति चंचल रतिरूप इसका प्रवाह है। जो इस यौवनरूप नदीको पारकर गये और स्त्रीरूपी मगरमच्छोंने जिन्हें नहीं पकड़ा वे इस जगतमें अति शूरवीर हैं अर्थात् जवानीमें भी जिन्हें स्त्रीकी चाहने नहीं घेरा वे ही सच्चे शूरवीर हैं ॥११०६||
गा०-टी०-विषयरूपी बनमें विचरण करने वाले जिस पुरुषको स्त्रीरूपी शिकारीके द्वारा छोड़े गये कटाक्षदृष्टिरूपी बाणोंने नहीं बींधा वह धन्य है। इन बाणोंमें लगा पंख स्त्रीका विलास है । विलासके साथ कटाक्ष दृष्टिरूपी बाण स्त्रीरूपी शिकारी विषयरूपी वनमें विचरण करने वालों पर चलाता है । जो उससे बचे रहते हैं वे धन्य हैं ।।११०७।।।
गा०-स्त्री व्याघ्रके समान है भृकुटि विकार उसके तीक्ष्ण दाँत है। विलासरूपी कन्धा है । कटाक्षदृष्टि उसके नख है । यौवनरूपी बनमें विचरण करने वाले जिस पुरुषको यह स्त्रीरूपी व्याघ्र नहीं पकड़ता, वह धन्य है ।।११०८।।
गा०–तीनों लोकरूपो बनको जलाने वाली और विषयरूपी वृक्षोंसे प्रज्वलित यह कामरूप आग यौवन रूपी तृणों पर चलने में चतुर जिस मनुष्यको नहीं जलाती वह धन्य है ॥११०४||
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