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भगवती आराधना
प्रशस्यगुणसद्भावं ज्वरवृद्धिनिमित्ततां चापेक्ष्य न शोभनमिति वचो मृषकान्ततो नापि सत्यमेवेति द्वयात्मकता ॥११८९॥
संसयवयणी य तहा असच्चमोसा य अट्ठमी भासा ।
णवमी अणक्खरगदा असच्चमोसा हवदि णेया ॥११९०।। 'संसयवयणी' किमयं स्थाणुरुत पुरुष इत्यादिका द्वयोरेकस्य सद्भावमितरस्याभावं चापेक्ष्य द्विरूपता। 'अणक्खरगदा' अङ्गलिस्फोटादिध्वनिः कृताकृतसंकेतपुरुषापेक्षया प्रतीतिनिमित्ततामनिमित्ततां च प्रतिपद्यते इत्युभयरूपा ॥११९०॥
उग्गमउप्पायणएसणाहिं पिंडमुवघि सेज्जं च ।
सोधितस्स य मुणिणो विसुज्झए एसणासमिदी ॥११९१।। 'उग्गमउप्पादणएसणाहि' उद्गमोत्पादनेषणादोषरहितं भक्तमुपकरणं वसति च गृह्णत एषणासमितिर्भवतीति सूत्रार्थः । दशवकालिकटीकायां श्रीविजयोदयायां प्रपञ्चिता उद्गमादिदोषा इति नेह प्रतन्यन्ते ॥११९१॥ आदाननिक्षेप्रणसमितिनिरूपणा गाथा--
सहसाणाभोगिददुप्पमज्जिय अपच्चवेसणा दोसो ।
परिहरमाणस्स हवे समिदी आदाणणिक्खेवो ॥११९२॥ 'सहसणाभोगिव' आलोकनप्रमार्जने कृत्वा आदान निक्षेप इत्येको भङ्गः। अनालोक्य प्रमार्जनं कृत्वा दूध उत्तम नहीं है ? यदि दूसरा कहे कि माधुर्य आदि प्रशस्त गुणोंकी अपेक्षा तो उत्तम है किन्तु ज्वरको बढ़ानेवाला होनेसे उत्तम नहीं है तो इस प्रकारके वचन न सर्वथा असत्य हैं और न सर्वथा सत्य हैं किन्त दोनों रूप होनेसे उभयात्मक हैं। यहाँ उभयात्मकसे इन वच असत्यरूप नहीं समझना चाहिए। किन्तु सत्य भी नहीं और असत्य भी नहीं अर्थात् अनुभयरूप समझना चाहिए ॥११८९||
गा-आठवीं असत्यमृषा भाषा संशय बचनो है। जैसे यह स्थाणु है या पुरुष । दोनोंमेंसे एकके सद्भाव और दुसरेके अभावकी अपेक्षा यह वचन उभयरूप है। और नौवीं असत्यमषा भाषा अनक्षरात्मक भाषा है। जैसे अंगुलि चटकाने आदिका शब्द । जिस पुरुषने संकेत ग्रहण किया है उसे तो ध्वनिसे प्रतीति होती है दूसरेको नहीं होती। इस तरह यह वचन उभयरूप है ॥११९०॥
अब एषणा समितिका कथन करते हैं
या०-उद्गम, उत्पादन और एषणा दोषोंसे रहित भोजन, उपकरण और वसतिको ग्रहण करनेवाले मुनिकी एषणा समिति निर्मल होती है ॥११९१।।।
आदाननिक्षेपण समितिका कथन करते हैंगा०-ट्री०-विना देखे और विना प्रमार्जन किये पुस्तक आदिका ग्रहण करना या रखना
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