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भगवती आराधना प्रशस्तनिदाननिरूपणार्थोत्तरगाथा
संजमहेदुं पुरिसत्तसबलविरियसंघदणबुद्धी।
सावअबंधुकुलादीणि णिदाणं होदि हु पसत्थं ॥१२१०।। 'संजमहेदु' संयमनिमित्तं । 'पुरिसत्तसत्तबलविरियसंघडणबुद्धी' पुरुषत्वमुत्साहः, बलं शरीरगतं दाढयं, वीर्य वीर्यान्तरायक्षयोपशमजः परिणामः । अस्थिबन्धविषया वजऋषभनाराचसंहननादिः । एतानि पुरुषत्वादोनि संयमसाधनानि मम स्युरिति चित्तप्रणिधानं प्रशस्तनिदानं । 'सावयबंधुकुलादिनिदानं' श्रावकबन्धुनिदानं । 'अदरिद्रकुले, अवन्धुकुले वा उत्पत्ति प्रार्थना प्रशस्तनिदानं ॥१२१०॥ अप्रशस्तनिदानमाचष्टे
माणेण जाइकुलरूवमादि आइरियगणधरजिणत्तं । ।
सोभग्गाणादेयं पत्थंतो अप्पसत्थं तु ।।१२११॥ 'माणेण' मानेन हेतुना । 'जातिकुलरूवमादि' जातिर्मातृवंशः, कुलं पितृवंशः, जातिकुलरूपमात्रस्य सुलभत्वात्प्रशस्तजात्यादिपरिग्रहः । इह 'आइरियगणधरजिणत्तं' आचार्यत्वं, गणधरत्वं, जिनत्वं । 'सोभग्गाणादेज्ज' सौभाग्यं, आज्ञां, आदेयत्वं च । 'पच्छेतो' प्रार्थयतः । 'अप्पसत्थं त' अप्रशस्तमेव निदानं मानकषायदूषितत्वात् ॥१२११॥
प्रशस्त निदानका कथन करते हैं
गा०-संयममें निमित्त होनेसे पुरुषत्व, उत्साह, शरीरगत दृढ़ता, वीर्यान्तरायके क्षयोपशम से उत्पन्न वीर्यरूप परिणाम, अस्थियोंके बन्धन विशेष रूप वज्रऋषभनाराच संहनन आदि, ये संयम साधन मुझे प्राप्त हों, इस प्रकार चित्तमें विचार होना प्रशस्त निदान है। तथा मेरा जन्म श्रावक कुलमें हो, ऐसे कुलमें हो जो दरिद्र न हो, बन्धु बान्धव परिवार न हो, ऐसो प्रार्थना प्रशस्त निदान है ॥१२१०॥
विशेषार्थ-एक प्रतिमें दरिद्रकुल तथा एकमें बन्धुकुल पाठ भी मिलता है। दीक्षा लेनेके लिये दरिद्रकुल भी उपयोगी हो सकता है और सम्पन्न घर भी उपयोगी हो सकता है। इसी तरह बन्धु बान्धव परिवारवाला कुल भी उपयोगी हो सकता है और एकाकीपना भी। मनुष्यके मनमें विरक्ति उत्पन्न होने की बात है ॥१२१०॥
अप्रशस्त निदान कहते हैं
गा०-मानकषायके वश जाति, कुल, रूप आदि तथा आचार्यपद, गणधरपद, जिनपद, सौभाग्य, आज्ञा और आदेय आदिकी प्राप्तिकी प्रार्थना करना अप्रशस्त निदान है ॥१२११।।
टो०-माताके वंशको जाति और पिताके वंशको कुल कहते है। जाति कुल और रूप मात्र तो सुलभ हैं क्योंकि मनुष्य पर्यायमें जन्म लेनेपर ये तीनों अवश्य मिलते हैं। इसलिये यहाँ जाति कुल और रूपसे प्रशंसनीय जाति आदि लेना चाहिये। मान कषायसे दूषित होनेसे यह अप्रशस्त निदान है ।।१२११।।
१. दरिद्रकुले-अ० ।
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