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विजयोदया टोका
६११ ज्ञानसंयमयोरन्यतरस्य साधनमन्तरेण ज्ञानं चारित्रं वा मम न सिध्यतीति तस्य ग्रहणं नानुपयोगि नो 'याचतश्च ते ॥१२०२॥
वज्जणमणण्णुणादगिहप्पवेसस्स गोयरादीसु ।
उग्गहजायणमणुवीचिए तहा भावणा तइए ॥१२०३।। 'वज्जणमणणुण्णादगिहप्पवेसस्स' गृहस्वामिभिरननुज्ञातगृहप्रवेशवर्जनं भावना। 'गोयरादीसु' गोचरादिषु इदं वेश्म प्रविश, अत्र वा तिष्ठेति योऽननुज्ञातो देशस्तस्य अप्रवेशनं । 'उग्गहजायणअणुवीचिए' अवग्रहयाचना सूत्रानुसारेण तृतीये भावनाः ॥१२०३॥
महिलालोयणपुव्वरदिसरणसंसत्तवसहिविकहाहिं ।
पणिदरसेहिं य विरदी भावणा पंच बंभस्स ॥१२०४॥ 'महिलालोअणपुन्वरदिसरणसंसत्तवसदिविकहाहि' स्त्रीणामालोकनं, पूर्वरतस्मरणं, स्त्रीभिराकुला या वसतिः शृङ्गारकथा इत्येतद्विरतयः । 'पणिदरसेहि य विरदो' बलदर्पकरेभ्यो विरतिश्चेति पञ्च व्रतभावना: ॥१२०४॥
अपडिग्गहस्स मणिणो सद्दफरिसरसरूवगंधेसु ।
रागद्दोसादीणं परिहारो भावणा हुंति ॥१२०५।। ___ 'अपरिग्गहस्स' परिग्रहरहितस्य । 'मुणिणो' मुनेः । सद्दफरिसरसरूवगंधेसु' शब्दस्पर्शरसरूपगन्धेषु । मनोज्ञामनोज्ञेषु । 'रागद्दोसादीणं' रागद्वषयोः परिहारो विषयभेदात्पश्चप्रकारभावनाः पञ्चमस्य ।।१०२५।। जानता है कि यह वस्तु ज्ञान और संयममेंसे एककी साधन है इसके बिना मुझे ज्ञान अथवा चारित्रकी सिद्धि नहीं होगी और उसीको ग्रहण करता है, अनुपयोगी वस्तुको ग्रहण नहीं करता। उसीके ये भावना होती है ।।१२०२।।
गा०-गोचरी आदिमें गृहस्वामीके द्वारा अनुज्ञा नहीं दिये घरमें प्रवेश न करना अर्थात् इस घरमें प्रवेश करें, अथवा यहाँ ठहरें इस प्रकारसे जहाँ गृहस्वामीकी अनुज्ञा प्राप्त न हो उस देशमें प्रवेश न करे और शास्त्रके अनुसार ग्रहण करने योग्य वस्तुकी याचना करना, ये पांच अदत्तादानविरमणव्रत की भावना हैं ॥१२०३।।
___गा०-स्त्रियोंकी ओर देखना, पूर्व में भोगे हुए भोगोंका स्मरण, स्त्रियोंसे युक्त वसतिका, शृङ्गारकथा और इन्द्रियोंमें मद और बल पैदा करनेवाले रस, इन सबसे विरत होना ब्रह्मचर्यव्रत की पाँच भावनाएँ हैं ।।१२०४॥
___ गा०-परिग्रह रहित मुनिका मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्धमें राग और द्वेषका त्याग अर्थात् मनोज्ञसे राग और अमनोज्ञसे द्वोष न करना विषयोंके भेदसे पाँच प्रकारको भावना पाँचवें अपरिग्रह व्रत की हैं ।।१२०५।।
१. नो याच्यन स्यन्ते-अ० । नो योग्य लभ्यते-जा । ग्रहणं, इत्यस्य अग्रे पाठो नास्ति आ० । ७७
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