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भगवती आराधना
तदानयनं तत्संस्करणं, तद्रक्षणं इत्यादिकं आदिशब्देन गृहीतं । 'निःसंगे' सङ्गरहिते 'णस्थि सम्वविक्खेवा' न सन्ति सर्वे व्याक्षेपाः । 'ज्झाणज्झणाणि' ध्यानं अध्ययनं च । 'तदो' व्यापाभावात चेतसि । 'तस्स' अपरिग्रहस्य । 'अविग्घेण बच्चंति' विघ्नमन्तरेण वर्तते । सर्वेषु तपस्सु प्रधानयोनिस्वाध्याययोरुपायो अपरिग्रहता इत्याख्यातमनया गाथया ॥११६७।।
गंथच्चाएण पुणो भावसिसुद्धी वि दाविदा होइ ।
ण हु संगघडिदबुद्धी संगे जहिदुं कुणदि बुद्धी ॥११६८॥ 'संगच्चाएण पुणो' सङ्गत्यागेन पुनः । 'भावविसुद्धी वि दाविदा होदि' परिणामस्य विशुद्धिर्दाशिता भवति । 'ण है संगघडिदबुद्धी' नव परिग्रहघटितबुद्धिः । 'संगे जहिदु कुणदि बुद्धी' परिग्रहांस्त्यक्तुं करोति बुद्धि ।।११६८॥ या च प्रक्रान्ता सल्लेखना कषायविषया सा च परिग्रहत्यागमूलेति कथयति
णिस्मंगो चेव सदा कसायसल्लेहणं कुणदि भिक्खू ।
संगा हु उदीरति कसाय अग्गीव कहाणि ।।११६९।। णिस्संगो चेव' निष्परिग्रहश्चैव सदा कषायपरिणामांस्तनन करोति न सपरिग्रहः । कथं इति तदाचष्टे-'संगा खु उदोरेंति' परिग्रहा उदीरयन्ति । 'कसाए' कषायान् । 'अग्गीव' अग्निरिव 'कट्ठाणि' काष्ठानि ॥११६९॥
सव्वत्थ होइ लहुगो रूवं विस्सासियं हवदि तस्स । गुरुगो हि संगसत्तो संकिज्जइ चावि सव्वत्थ ।।११७०।।
याचना करनी होती है। याचना करने पर मिल जाये तो सन्तोष होता है, न मिले तो मनमें दीनताका भाव रहता है। मिलने पर उसको लाना, उसका संस्कार करना, उसकी रक्षा करना 'आदि' शब्दसे लिया है। इस तरह परिग्रहके निमित्त ये सब करना पड़ता है। किन्तु परिग्रहका त्याग करके निर्ग्रन्थ बन जाने पर ये सब परेशानियां नहीं होती। तब चित्त में किसी प्रकारकी आकुलता न होनेसे उस निर्ग्रन्थ साधुका ध्यान और स्वाध्याय बिना विघ्नके चलते हैं। अतः इस गाथाके द्वारा कहा है कि सब तपोंमें ध्यान और स्वाध्याय प्रधान हैं और परिग्रहका त्याग उनका उपाय है ।।११६७।।
गा०-परिग्रहके त्यागसे परिणामोंकी निर्मलता भी प्रकट होती है; क्योंकि जिसकी मति परिग्रहमें आसक्त होती है वह परिग्रहको छोड़नेका विचार नहीं रखता ॥११६८।।
. आगे कहते हैं कि यहाँ जिस कषाय विषयक सल्लेखनाका प्रकरण चला है उसका मूल परिग्रहत्याग ही है
गा०-जो परिग्रहसे रहित है वही सदा कषाय रूप परिणामोंको कृश करता है परिग्रही नहीं । क्योंकि जैसे लकड़ी डालनेसे आग भड़कती है वैसे ही परिग्रहसे कषाय भड़कती है ॥११६९।।
१. दीविदा-मु०। २. द्धिर्दीपिना दर्शिता-मु०। ३. तनूकरोति-आ० मु० ।
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