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भगवती आराधना रागो लोभोमोहो' ममेदं भावो रागः, द्रव्यगतगुणासक्तिर्लोभः, परिग्रहेच्छा मोहो। ममेदं भावः संज्ञा । किश्चित मम भवति शोभनमिति इच्छानुगतं ज्ञानं । तीवोऽभिलाषो यः परिग्रहगतः स गौरवशब्देनोच्यते । एते यदोदिता परिणामास्तदा ग्रन्थान्बाहान ग्रहीतुं मनः करोति नान्यथा। तस्माद्यो वाह्यं गृह्णाति परिग्रहं स नियोगतो लोभाद्यशुभपरिणामवानेवेति कर्मणां बन्धको भवति । ततस्त्याज्या परिग्रहाःः ॥१११५।। स च परिग्रहत्यागो न स्वमनीषिकाचचितोऽपि तु निश्चयेन कर्तव्य'तयोपदिष्ट इत्याचष्टे
चेलादिसव्वसंगच्चाओ पढमो हु होदि ठिदिकप्पो ।
इहपरलोइयदोसे सव्वे आवहदि संगो हु ।।१११६॥ 'चेलादिसव्वसंगच्चागो इति' दशविधा हि स्थितिकल्पा निरूपिता अचेलतादयः । तत्र आचेलक्यं नाम चेलमात्रत्यागो न भवति । किन्तु चेलादिसर्वसंगत्यागः प्रथमः स्थितिकल्पो दशानामाधः। 'इहपरलोगिगदोसे' ऐहिकामुष्मिकांश्च दोषानावहति परिग्रहो, यस्मात्तस्माज्जन्मद्वयगतदोषपरिहारेणादरवता सकलः परिग्रहस्त्याज्यः । इति भावः ॥१११६॥ श्रुतं चेलपरित्यागमेव सूचयति आचेलक्कमिति न इतरत्यागमित्याशङ्कायामाचष्ट
देसामासियसुत्त आचेलक्कंति तं खु ठिदिकप्पे । .
लुत्तोत्थ आदिसहो जह तालपलंबसुत्तम्मि ।।१११७।। 'देसामासिगसुत्तं' परिग्रहैकदेशामर्शकारिसूत्रं 'आचेलपर्कति' आचे लक्यमिति । 'तं खु' तत् । 'ठिदि
गा०-टी०-'यह मेरा है' ऐसे भावको राग कहते हैं। द्रव्यके गुणोंमें आसक्तिको लोभ कहते हैं। परिग्रहकी इच्छाको मोह कहते हैं। मेरे पास कुछ होता तो अच्छा होता, इस प्रकारके ममत्व भावको संज्ञा कहते हैं। परिग्रहविषयक तीव्र अभिलाषाको गारव याव्दसे कहते हैं। ये परिणाम जव उत्पन्न होते हैं तब बाह्य परिग्रहको ग्रहण करनेका मन होता है, उनके अभावमें नहीं होता । अतः जो बाह्य परिग्रह ग्रहण करता है वह नियमसे लोभ आदि रूप अशुभ परिणाम वाला होनेसे कर्मका बन्ध करता है । अतः परिग्रह त्याज्य है ।।१११५।।
____ आगे कहते हैं कि यह परिग्रह त्याग हमने अपनी बुद्धिसे नहीं कहा, किन्तु निश्चयसे आगममें इसके पालनेका उपदेश है
गा०-आगममें दस प्रकारका स्थितिकल्प कहा है। उसमें पहला कल्प आचेलक्य है । आचेलक्यका अर्थ केवल वस्त्र मात्रका त्याग नहीं है किन्तु वस्त्र आदि सर्व परिग्रहका त्याग है। यह दस कल्पोंमेंसे पहला स्थितिकल्प है। यतः परिग्रह इस लोक और परलोक सम्बन्धी दोषोंको लाती है अतः जो दोनों लोक सम्बन्धी दोषोंसे बचना चाहता है उसे सब परिग्रह छोड़ना चाहिए। यह इस गाथाका भाव है ।।१११६।।
कोई आशंका करता है कि आगममें वस्त्र मात्रके त्यागकी सूचना है अन्यके त्यागकी नहीं? इसका उत्तर देते हैं
गा०-टी०-स्थितिकल्पका कथन करते हुए जो 'आचेलक्य' आदि सूत्र कहा है वह देशा१. व्यः तथोप-अ० आ० ।
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