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भगवती आराधना अववादिलिंगकदो वि' अपवादलिंगस्थोऽपि । करोति स्थानार्थवृत्तिरिह परिगृहीतः । तथा च प्रयोगः एवं च कृत्वा एवं च स्थित्वेत्यर्थः । 'सुज्झदि' शुध्यति च । कर्ममलापायेन शुद्धयति । कीदृक् सन् यः स्वां 'सत्ति' शक्ति। 'अगृहमाणो' अगृहमानः सन । 'उवधि' परिग्रहं । 'परिहरंतो' परित्यजन् योगत्रयेण । "णिदणगरहणजुत्तो' सकलपरिग्रहत्यागो मुक्तेर्मा! मया तु पातकेन वस्त्रपात्रादिकः परिग्रहः परीषहभीरुणा गृहीत इत्यंतःसंतापो निंदा । गर्दा परेषां एवं कथनं । ताभ्यां युक्तः निंदागहक्रियापरिणतः इति यावत् । एवमचेलता व्यावणितगुणा मूलतया गृहीता ।।८६॥ केशलोचाकरणे के दोषा यान्परिहत्तु लोचोऽनुष्ठीयते इत्यारेकायां दोषप्रतिपादनायोत्तरं गाथाद्वयम्
केसा संसज्जति हु णिप्पडिकारस्स दुपरिहारा य ।
सयणादिसु ते जीवा दिट्ठा आगंतुया य तहा ॥ ८७ ॥ 'केसा' केशाः । 'संसज्जति खु' खुशब्द एवकारार्थः । यूकालिक्षोत्पत्तेराधारभावमुपव्रजन्त्येव कस्य केशाः ? 'णिप्पडियारस्स' निष्क्रान्तः प्रतीकारात निष्प्रतीकारः । प्रतीकारशब्दः सामान्यवचनोऽपि संसजनस्य प्रकृतत्वात् संसजनप्रतिकार एव वृत्तो गृह्यते । तैलाभ्यंगगंधादिप्रक्षेपजलप्रक्षालनादिनियामकुर्वत इत्यर्थः । ते च सम्मूच्र्डनामुपगताजीवा यूकादयः । 'दुःपरिहारा य' दुःखेन परिह्रियन्ते । क्व ? 'सयणादिसु' शयनं आतपगमनं, शिरसा कस्यचिदवष्टंभनं । निद्रामुद्रितलोचनस्य पतनं परवशस्य सतः आदिशब्देन गृह्यते । बाधा
ट्रो०--'अववादियलिंगकदो' में 'कद' जिस 'करोति' धातुसे बना है उसका अर्थ यहाँ स्थान लिया है । जैसे 'ऐसा करके' का अर्थ इस प्रकार स्थिर करके होता है । अतः अपवादलिंगमें स्थित भी कर्ममलको दूर करके शुद्ध होता है । किस प्रकार होता है ? अपनी शक्तिको न छिपाकर मन-वचनकायसे परिग्रहका त्याग करनेपर होता है। तथा, समस्त परिग्रहका त्याग मुक्तिका मार्ग है, मुझ पापीने परीषहसे डरकर वस्त्र पात्र आदि परिग्रह स्वीकार किया। इस प्रकारके अन्तःसन्तापको निन्दा कहते हैं। दूसरोंसे ऐसा कहना गर्दा है। उनसे युक्त होनेपर अर्थात् अपनी निन्दा गर्दा करनेपर शुद्ध होता है । इस प्रकार जिस अचेलताके गुणोंका वर्णन ऊपर किया गया है उसे मूलरूपमें स्वीकार किया है ।।८६||
केशलोच न करने में क्या दोष है जिन्हें दूर करनेके लिए लोच किया जाता है ? इस शङ्काके उत्तर में दो गाथाओंसे दोषोंको कहते हैं
गा०-प्रतीकार न करनेवालेके केश जूं आदि सम्मूर्छन जीवोंके आधार होते हैं। और वे सम्मूर्छन जीव शयन आदिमें दुष्परिहार होते हैं। तथा अन्यत्रसे आते हुए भी कीट आदि देखे गये हैं ।।८७॥
दो०-'संसज्जति खु' में खु शब्दका अर्थ एवकार है। अतः निष्प्रतीकारके केश जूं लीख आदिकी उत्पत्तिके आधार होते ही हैं। जो प्रतीकारसे रहित है वह निष्प्रतीकार है। यद्यपि प्रतीकार शब्द सामान्य प्रतीकारका वाचक है। फिर भी संसजनका प्रकरण होनेसे संसजन सम्बन्धी प्रतिकार लिया जाता है। उसका अर्थ होता है कि जो बालोंमें तेल मर्दन नहीं करता, सुगन्धित वस्तु नहीं लगाता, उन्हें पानीसे नहीं धोता उसके केशोंमें सम्मूर्छन जू आदि उत्पन्न हो जाते हैं और साधुके सोनेपर, धूपमें जानेपर, सिरसे किसीके टकरानेपर उन जीवोंको बाधा
१. शय्योपगमनं आ० मु० ।
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