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भगवती आराधनां अकाले मच्चुत्ति । नरशब्दस्य सामान्यवाचित्वात्सर्वन रविषयः अकालमरणाभावोऽयुक्तः केषुचित्कर्मभूमिजेषु स्य सतो निषेधादित्यभिप्रायः ।।८१८॥
अहवा सयबुद्धीए पडिसेधे खेतकालभावेहिं ।
अविचारिय णत्थि इह घडोत्ति तह एवमादीयं ।।८१९।। 'अथवा विवादबुद्धीए पडिसेधे खेत्तकालभावहिं अविचारिय भावमिति शेषः' । स्वबुद्धया क्षेत्रकालभावैरभावमविचार्यमाणं अत्र नास्ति इदानीं न विद्यते, शक्लःकृष्णो न वेत्यनिरूप्य घटस्य भाव इत्थं अनेनप्रकारेण 'णत्थि घडो जह एवमादिगं नास्ति घट इत्येवमादिकं । सतो घटस्य अविशेषेण असंतवचनं असद्वचनमित्युदाहरणान्तरमिदं ॥८१९।।
जं असभूदुब्भावणमेदं विदियं असंतवयणं तु ।
अस्थि सुराणमकाले मच्चुत्ति जहेवमादीयं ।।८२०।। _ 'जं असभूदुब्भावणमेदं विदियं असंतवयणं तु' यदसदुद्भावनं द्वितीयं असद्वचस्तस्योदाहरणमुत्तरं । 'अस्थि सुराणमकाले मच्चुत्ति जहेवमादीयं' सुराणामकाले मृत्युरस्तीत्येवमादिकं यथा असदेव अकालमरणमनेनोच्यते इत्यसद्वचनम् ।।८२०।। नहीं होता अतः उक्त कथन उचित ही है।
समाधान-गाथामें आगत 'नर' शब्द सामान्यवाची होनेसे सभी मनुष्योंके अकालमरणका अभाव कहना अयुक्त है। किन्हीं कर्मभूमिज मनुष्योंमें अकाल मरण होता है अत: सत्का निषेध करनेसे उक्त कथनको असत्य कहा है ।।८१८||
गा०-अथवा क्षेत्रकालभावसे अभावका विचार न करके -घट यहाँ नहीं है, इस समय नहीं है, या सफेद अथवा कृष्णरूप नहीं है, ऐसा न विचारकर अपनी बुद्धिसे घटका सर्वथा अभाव कहना असत्य वचन है ।।८१९||
विशेषार्थ-किसी वस्तुका निषेध या विधि द्रव्य क्षेत्र काल और भावकी अपेक्षासे होती है। न तो वस्तुका सर्वथा निषेध होता है और न सर्वथा विधि होती है। प्रत्येक वस्तु अपने द्रव्य क्षेत्र काल और भावकी अपेक्षा अस्तिरूप है और परद्रव्य क्षेत्रकालभावकी अपेक्षा अस्तिरूप है जैसे घट अपने द्रव्यकी अपेक्षा अस्तिरूप है और अन्य घटोंकी अपेक्षा नास्तिरूप है। तथा जिस क्षेत्रमें वह घट है उस क्षेत्रमें अस्तिरूप है, अन्य घटोंके क्षेत्र में नास्तिरूप है। जिस कालमें है उस कालमें अस्तिरूप है, अन्यकालोंमें नास्तिरूप है। जिस भावमें स्थित है उस भावसे अस्तिरूप है अन्यभावकी अपेक्षा नास्तिरूप है। ऐसे द्रव्य क्षेत्र काल भावका विचार किये विना यह कह देना कि घट नहीं है यह असत्यवचनका दूसरा उदाहरण है ।।८१९||
गा०-जो नहीं है उसे 'है' कहना दूसरा असत्यवचन है। जैसे देवोंके अकालमें मरण होता है ऐसा कहना। किन्तु देवोंमें अकालमरण नहीं होता। अतः यह असत्का उद्भावन करनेसे असत्यवचन है ।।८२०।।
१. शुक्ल कृष्णो भवत्यनिरूप्य-आ० ।
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