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विजयोदया टीका
५३१ ईसालुयाए गोववदीए 'गामकूडधूयिया चेव ।
छिण्णं पहदो सीसं भल्लेण पासे सीहबलो ।।९४४॥ 'ईसालुयाए' ईर्ष्यावत्या । कोववदीए' कोपवतीनामधेया तया । 'गामकूटधूदिगा एव' ग्रामकूटस्य. दुहितुः । 'सोसं छिण्णं' शिरश्छिन्नं । 'पहदो' प्रहतस्तथा । 'भल्लएण' शक्त्या। 'पासम्मि' पार्श्वदेशे । 'सीहबलो' सिंहबलसंज्ञितः ॥९४४||
वीरमदीए सूलगदचोरदट्ठोडिगाए वाणियओ।
पहदो दत्तो य तहा छिण्णो ओट्ठोत्ति आलविदो ।।९४५।। 'वीरवदीए' वीरपतीसंज्ञिकया। 'सूलगदचोरट्ठोद्विगाए' शूलस्थचोरदष्टाधरया। 'वाणियगो' वणिक्सुतः । 'पहदो' प्रहतः । 'दत्तो य' दत्तश्च । 'तहा' तथा । 'छिण्णो ओट्रोत्ति' ओष्ठच्छेदोऽनेन कृतः इति च । 'आलविदो' भणितः ॥९४५॥
वग्घविसचोरअग्गीजलमत्तगयकण्हसप्पसत्तुसु ।
सो वीसंभं गच्छदि वीसंभदि जो महिलियासु ।।९४६।। 'वग्यविसचोरअग्गीजलमत्तगयकिण्हसप्पसत्तूसु' व्याघ्र, विणे, चोरे, अग्नी, जले, मत्तगजे, कृष्णसर्प, शत्रौ च । 'सो विस्संभं गच्छदि' स विस्रम्भं गच्छति । 'विस्संभदि जो महिलियासु' विस्रम्भं यः करोति वनितासु ।।९४६।।
वग्घादीया एदे दोसो ण णरस्स तह करेज्जण्हू ।
जं कुणइ महादोसं दुट्ठा महिला मणुस्सस्स ।।९४७॥ गा०-ईर्ष्यालु कोपवतीने ग्रामकूटकी पुत्रीका सिर काट दिया और सिंहबलकी कोखमें भाला भोंक दिया ॥९४४।।
विशेषार्थ - देवरति और सिंहबलकी कथा बृहत्कथाकोशमें ८५-८६ नम्बरपर हैं। उसमें गोमती नाम है ।।९४४।।
गा०-वीरमती एक चोरसे फंसी थी। उसे सूली दी गई तो वह उससे मिलने गई। चोरने कहा-अपने मुखका पान दो। इस बहाने चोरने उसका ओठ काट लिया। उसने कहा कि मेरे पति दत्तने मेरा ओठ काट लिया ॥९४५।।
विशेषार्थ-बृहत्कथाकोशमें वीरवतीकी कथाका क्रमाङ्क ८७ है ॥९४५।।
गा०-जो स्त्रियोंका विश्वास करता है वह व्याघ्र, विष, चोर, आग, पानी, मत्त हाथी, कृष्ण सर्प, और शत्रुका विश्वास करता है अर्थात् स्त्रीपर विश्वास ऐसा ही भयानक है जैसा इनपर विश्वास करना भयानक है ।।९४६।।
२. गोववदीए
१.""गामकूडधुदिया सीसं। छिण्णं पहदो तध भल्लएण पासम्मि"-म० । गोपवती-मु० । गोववदीए गोपवती संज्ञया-मूलारा० । ३. वीरमती-आ० ।
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