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विजयोदया टीका
५३९ णासो अत्थस्स खओ देहस्स य दुग्गदीपमग्गो य ।
आवाहो य अणत्थस्स होइ पहवो य दोसाणं ॥९७८।। 'णासो अत्थस्स' अर्थस्य नाशः । देहस्य क्षयः । दुर्गतेर्मार्गः । अनर्थस्य कुल्या । दोषाणां प्रभवः ॥९७८॥
महिला विग्यो धम्मस्स होदि परिहो य मोक्खमग्गस्स ।
दुक्खाण य उप्पत्ती महिला सुक्खाण य विपत्ती' ॥९७९।। 'महिला विग्यो' वनिता विघ्नो भवति । 'धम्मस्स' धर्मस्य । 'परिघों' मोक्षमार्गस्य । दुःखानां चोत्पत्तिः । सौख्यानां च विपत्तिः ॥९७९॥
पासो व बंघिदं जे छेत्तं महिला असीव पुरिसस्स ।
सिल्लं व विघिदुजे पंकोव निमज्जिदु महिला ॥९८०॥ 'पासो व बंधिदु जे' पाश इव बंधितु । सुगमा गाथा इति नादरो व्याख्याने ॥९८०॥
मूलो इव भित्तुं जे होइ पवोढुं तहा गिरिणदी वा । पुरिसस्स खुप्पदुकद्दमोव मचुव्व मरिदुजे ।।९८१॥ अग्गीवि य डहिदु जे मदोव पुरिसस्स मुज्झिदु महिला । महिला णिकत्तिदु करकचोव कंडूव पउलेदु ॥९८२॥ पाडेदु परसू वा होदि तह मुग्गरो व ताडेदु।
अवहणणं पि य चुण्णेदु जे महिला मणुस्सस्स ॥९८३॥ ___ गा०-धनका नाश करने वाली है । शरीरका क्षय करती है । दुर्गतिका मार्ग है । अनर्थके लिए प्याऊ है और दोषोंका उत्पत्ति स्थान है ।।९७८।।
गा०-स्त्री धर्ममें विघ्नरूप है। मोक्षमार्गके लिए अर्गला (साकल) है, दुःखोंकी उत्पत्तिका स्थान है और सुखोंके लिए विपत्ति है ।।९७९॥
गा०-स्त्री पुरुषको बाँधनेके लिए पाशके समान है। मनुष्यको काटनेके लिए तलवारके समान है । बीघनेके लिये भालेके समान है और डूबनेके लिये पंकके समान है ॥९८०॥
गा०-स्त्री मनुष्यके भेदनेके लिए शूलके समान है। संसार रूपी समुद्र में गिरनेके लिए नदीके समान है । खपानेके लिए दलदलके समान है। मारनेको मृत्युके समान है ।।९८१।।
गा०-जलानेको आगके समान है। मदहोश करनेके लिए मदिराके समान है। काटनेके लिए आरेके समान है । पकानेके लिए हलवाईके समान है ।।९८२।।
गा०—विदारण करनेके लिए फरसाके समान है। तोड़नेके लिए मुद्गरके समान है, चूर्ण करनेके लिए लुहारके घनके समान है ।।९८३।।
१. विक्ती-मु०, मूलारा० ।
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