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भंगवतो आराधना चंदो हविज्ज उण्हो सीदो सरो वि थड्डमागासं । ण य होज्ज अदोसा भद्दिया वि कुलबालिया महिला ।।९८४।। एए अण्णेय बहुदोसे महिलाकदे वि चिंतयदो । महिलाहितो विचित्तं उब्वियदि विसग्गिसरसीहिं ।।९८५।। वग्घादीणं दोसे णच्चा परिहरदि ते जहा पुरिसो । तह महिलाणं दोसे द? महिलाओ परिहरइ ॥९८६॥ महिलाणं जे दोसा ते पुरिसाणं पि हुंति णीयाणं । तत्तो अहियदरा वा तेसिं बलसचिजुत्ताणं ॥९८७।। जह सीलरक्खयाणं पुरिसाणं णिदिदाओ महिलाओ । तह सीलरक्खियाणं महिलाणं णिदिदा पुरिसा ॥९८८।। किं पुण गुणसहिदाओ इथिओ अस्थि वित्थडजसाओ । णरलोगदेवदाओ देवेहिं वि वंदणिज्जाओ ।।९८९॥ तित्थयरचक्कधरवासुदेवबलदेवगणधरवराणं । जणणीओ महिलाओ सुरणरवरेहिं महियाओ ॥९९०।।
गा०-कदाचित् चन्द्रमा उष्ण हो जाय, सूर्य शीतल हो जाय, आकाश कठोर हो जाय, किन्तु कुलीन स्त्री भी निर्दोष और भद्र परिणामी नहीं होती।।९८४||
गा०-स्त्रियोंके इन तथा अन्य बहुतसे दोषोंका विचार करने वाले पुरुषोंका मन विष और आगके समान स्त्रियोंसे विमुख हो जाता है ।।९८५।।
गा०-जैसे पुरुष व्याघ्र आदिके दोष देखकर व्याघ्र आदिको त्याग देता है उनसे दूर रहता है, वैसे ही स्त्रियों के दोष देखकर मनुष्य स्त्रियोंसे दूर हो जाता है ॥९८६।।
गा०—स्त्रियों में जो दोष होते हैं वे दोष नीच पुरुषोंमें भी होते हैं अथवा मनुष्योंमें जो बल और शक्तिसे युक्त होते हैं उनमें स्त्रियोंसे भी अधिक दोष होते हैं ॥९८७॥
गा०-जैसे अपने शीलकी रक्षा करने वाले पुरुषोंके लिए स्त्रियाँ निन्दनीय हैं। वैसे ही अपने शीलकी रक्षा करने वाली स्त्रियों के लिए पुरुष निन्दनीय हैं ।।९८८।।
गा०-जो गुणसहित स्त्रियाँ हैं, जिनका यश लोकमें फैला हुआ है, तथा जो मनुष्य लोकमें देवता समान हैं और देवोंसे पूजनीय हैं उनकी जितनी प्रशंसा की जाये, कम है ।।९८९।।
गा०–तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव और श्रेष्ठ गणधरोंको जन्म देने वाली महिलाएँ श्रेष्ठ देवों और उत्तम पुरुषोंके द्वारा पूजनीय होती है ।।९९०।।
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