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भगवती आराधना
पासिय सुच्चा व सुरं पिज्जंतं सुंडओ भिलसदि जहा । विसए य तह समोहा पासिय सोच्चा व भिलस || १०७५ ||
'पासिया सुच्चा व सुरं' सुरां पीयमानां दृष्ट्वा वा श्रुत्वा वा शौंडोऽभिलषति । यथा तथा समोहो विषयानभिलषति दृष्ट्वा श्रुत्वा वा ॥ १०७५ ।।
जादो खु चारुदत्तो गोट्टीदोसेण तह विणीदो वि । गणियासत्तो मज्जासत्तो कुलदूसओ य तहा ||१०७६॥
'जादो खु चारुदत्तो' विनीतोऽपि चारुदत्तो गोष्ठीदोषेण गणिकासक्तो जातः मद्यावसक्तः कुल दूषकश्च ॥ १०७६ ॥
तरुणस्स वि वेरग्गं पण्हाविज्जदि णरस्स बुद्धेहिं ।
पहाविज्जर पाडच्छीवि हु वच्छस्स फरुसेण ॥ १०७७॥
'तरुणस्स वि' तरुणस्यापि वैराग्यं जन्यते ज्ञानवयस्तपोवृद्धः । वत्सस्य स्पर्शेन यथा गोः प्रस्तुतक्षीरा क्रियते ॥ १०७७ ॥
परिहरइ तरुणगोट्ठी विसं व बुढाउले य आयदणे ।
जो वस कुण गुरुणि सं सो णिच्छरह बंभं ॥ १०७८ ॥
'परिहरइ तरुणगोठ्ठी' परिहरति तरुणैः सह गोष्ठीं विषमिव यः, वृद्धं राकीर्णे चायतने यो वसति । करोति च गुर्वाज्ञां स निस्तरति ब्रह्मचर्यमिति संक्षेपोपदेशः । बृद्धसेवा गता ॥ १०७८॥
स्त्रीसंसर्गकृतदोषावेक्षणं स्वमनसा संसग्गीदोसावि य इत्यस्य सूत्रपदस्यार्थः साध्याहारतया सूत्राणां पिच्छिज्जंता इति वाक्यशेषात् --
गा०- - जैसे मद्यपी किसीको मद्य पीते देखकर अथवा सुनकर मद्यपानकी अभिलाषा करता है । वैसे ही मोही मनुष्य विषयोंको देखकर अथवा सुनकर विषयों की अभिलाषा करता है ॥१०७५ ॥
गा० - विनयवान भी चारुदत्त सेठ संगतिके दोषसे गणिका में आसक्त हुआ, मद्यपान में आसक्त हुआ और अपने कुलका दूषक हुआ || १०७६ ॥
गा० - ज्ञान, वय और तपसे वृद्ध पुरुषोंकी संगति तरुणपुरुषों में भी वैराग्य उत्पन्न करती है जैसे बछड़े के स्पर्शसे गौके स्तनोंमें दूध उत्पन्न होता है || १०७७ ||
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गा० - जो तरुणोंकी संगतिको विषकी तरह जानकर छोड़ देता है और ज्ञान तप शीलसे वृद्ध पुरुषोंके वासस्थानमें रहता है वह गुरुकी आज्ञाका पालन करता है और ब्रह्मचर्यको पालता है ॥१०७८ ॥
वृद्ध संगतिका प्रकरण समाप्त हुआ ।
अब स्त्रीके संसर्गसे होनेवाले दोषों को कहते हैं
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