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विजयोदया टीका
___ ५६३ आलोयणेण हिदयं पचलदि पुरिसस्स अप्पसारस्स ।
पेच्छंतयस्स बहुसो इत्थीथणजहणवदणाणि ॥१०७९।। आलोगणेण आलोकनेन । 'हिदयं' हृदयं प्रचलति । 'अल्पधृतिकस्य पुंसः प्रेक्षमाणस्य बहुशो युवतीनां वदनपयोधरपृथुजघनानि ॥१०७९॥
लज्जं तदो विहिंसं परिजयमध णिव्विसंकिदं चेव ।
लज्जालुओ कमेणारुहंतओ होदि वीसत्थो ॥१०८०॥ 'लज्ज तदो विहिस' ततो हृदयचलनोत्तरकालं लज्जां विनाशयति । विनष्टलज्जः परिचयमुपैति । ताभिर्दर्शनसमीपगमनहसनादिकं करोतीति यावत् । पश्चाग्निविशंको भवतीति मामनया सह स्थितं पश्यन्ति इति या शंका तामपाकरोति । लज्जावानपि नरः क्रमेण अभिहिता अवस्था उपारोहन, विश्वस्तो भवति ॥१०८०॥
वीसत्थदाए पुरिसो वीसंभं महिलियासु उवयादि ।
वीसंभादो पणयो पणयादो रदि हवदि पच्छा ॥१०८१।। 'वीसत्यदाए' विश्वस्ततया मनसः विश्रंभमुपयाति युवतिषु । विश्रंभात्प्रणयः प्रणयाद्रतिर्भवति ॥१०८१॥
उल्लावसमुल्लावएहिं चा वि अल्लियणपेच्छणेहिं तहा ।
महिलासु सइरचारिस्स मणो अचिरेण खुन्भदि हु ।।१०८२।। 'उल्लावसमुल्लाहिं' संभाषणप्रतिवचनैः, ढोकनेन, प्रेक्षणेन, तथा वनिताभिः स्वेच्छाचारी तस्य शीघ्र मनश्चलति ।।१०८२॥
ठिदिगदिविलासविन्भमसहासचेट्ठिदकडक्खदिट्ठीहिं । लीलाजुदिरदिसम्मेलणोक्यारेहि इत्थीणं ॥१०८३।।
गा०-युवती स्त्रियोंका मुख, स्तन और स्थूल नितम्बोंको बराबर ताकते रहनेसे चंचल चित्त मनुष्यका हृदय विचलित हो जाता है ।।१०७९।।
गा०-टी-हृदयके विचलित होनेके पश्चात् उसकी लज्जा जाती रहती है। निर्लज्ज होनेके पश्चात् वह उन स्त्रियोंको देखना, उनके समीप जाना, उनसे हँसी ठठोली करना आदिके द्वारा परिचय प्राप्त करता है। पीछे उसका यह भय जाता रहता है कि लोग मुझे इनके साथ देखेंगे। इस तरह लज्जाशील मनुष्य भी क्रमसे कही गई अवस्थाओंको प्राप्त करता हुआ स्त्रियोंके विषयमें विश्वस्त हो जाता है कि यह मुझसे अनुराग करती है और किसीसे यह कहेगी नहीं आदि ॥१०८०॥
गा०-अपने मनमें ऐसा विश्वास होनेसे वह स्त्रियोंमें भी विश्वास करने लगता है और प्रेमसे आसक्ति बढ़ती है ॥१०८१।।
गा०-आसक्ति बढ़नेसे परस्परमें वार्तालाप होने लगता है। बार-बार मिलना और परस्पर देखना होता है । इससे स्त्रियोंके सम्बन्धमें स्वेच्छाचारी मनुष्यका चित्त शीघ्र ही विचलित हो जाता है ।।१०८२।।
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