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विजयोदया टीका
५३५ 'आगासभूमि' आकाशस्य भूमेरुदधेर्जलस्य, मेरोर्वायोश्च परिमाणमस्ति । स्त्रीणां चित्तं पुनर्मातुन शक्यमस्ति ॥९५७॥
चिट्ठति जहा ण चिरं विज्जुज्जलबुव्वुदो व उक्का वा ।
तह ण चिरं महिलाए एक्के परिसे इवदि पीदी ॥९५८॥ 'जहा ण चिरं चिट्ठति' यथा न चिरं तिष्ठन्ति विद्युतः । जलबुद्बुदा उल्काश्च तथा वनितानां न कस्मिंश्चित्पुरुष प्रीतिश्चिरं तिष्ठति ॥९५८।।
परमाणू वि कहंचिवि आगच्छेज्ज गहणं मणुस्सस्स ।
ण य सक्का घेत्तु जे चित्तं महिलाए अदिसण्हं ॥९५९।। परमाणुरपि कथंचिन्मनुष्यस्य ग्रहणमागच्छेत् । वनितानां चित्तं पुनः ग्रहीतुं न शक्नतिसूक्ष्म ॥९५९॥
कुविदो व किण्हसप्पो दुट्ठो सीहो गओ मदगलो वा ।
सक्का हवेज्ज घेत्तु ण य चित्तं दुट्ठमहिलाए ॥९६०॥ 'कुविदो व' कुपितः कृष्णसर्पः दुष्टः सिंहो, मदगजो वा ग्रहीतु शक्यते । न तु ग्रहीतुं शक्यते दुष्टवनिताचित्तम् ॥९६०॥
सक्कं हविज्ज दट्ठ विज्जुज्जोएण रूवमच्छिम्मि ।
ण य महिलाए चित्तं सक्का अदिचंचलं णादु ॥९६१॥ 'सक्कं हवेज्ज' विद्युद्योतेन अक्षिस्थं रूपं द्रष्टुं शक्यं न पुनयुवतिचित्तमतिचपलं अवगन्तुं शक्यम् ।।९६१॥
गा०-आकाशकी भूमि, समुद्रके जल, सुमेरु और वायुका भी परिमाण मापना शक्य है किन्तु स्त्रियोंके चित्तका मापना शक्य नहीं है ।।९५७||
गा-जैसे बिजली, पानीका बुलबुला और उल्का बहुत समय तक नहीं रहते, वैसे ही स्त्रियोंकी प्रीति एक पुरुषमें बहुत समय तक नहीं रहती ॥९५८॥ . .
गा-परमाणु भी किसी प्रकार मनुष्यकी पकड़में आ सकता है। किन्तु स्त्रियोंका चित्त पकड़में आना शक्य नहीं है वह परमाणुसे भी अति सूक्ष्म है ॥९५९||
गा०-क्रुद्ध कृष्ण सर्प, दुष्ट सिंह, मदोन्मत हाथीको पकड़ना शक्य हो सकता है किन्तु दुष्ट स्त्रीके चित्तको पकड़ पाना शक्य नहीं है ॥९६०॥ .. .
गा०-बिजलीके प्रकाशमें नेत्रमें स्थित रूपको देखना शक्य है किन्तु स्त्रियोंके अति चंचल चित्तको जान लेना शक्य नहीं है ॥९६१।।
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