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विजयोदया टीका
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ते तारिसया माणा ओमच्छिज्जंति दुट्ठमहिलाहिं ।
जह अंकुसेण णिस्साइज्ज हत्थी अदिवलो वि ।।९३५।। 'ते तारिसणा माणा' तानि तथाभूतानि मानानि अवमथ्यन्ते दुष्टस्त्रीभिः । यथा अङ्कशेन निषद्या .कार्यते हस्तो अतिबलोऽपि ।।९३५।।
.. आसीय महाजुद्धाइं इत्थिहेर्नु जणम्मि बहुगाणि ।
भयजणणाणि जणाणं भारहरामायणादीणि ।।९३६॥ 'आसीय महाजुद्धाणि' आसन्महायुद्धानि जगति स्त्रीनिमित्तानि बहूनि भयजननानि जनानां भारतरामायणादीनि ।।९३६।।
महिलासु णत्थि वीसंभपणयपरिचयकदण्णदा हो ।
लहु मेव परगयमणा ताओ सकुलंपि जहति ॥९३७।। 'महिलासु' स्त्रीषु न सन्ति विस्रभः प्रणयः, परिचयः, कृतज्ञता, स्नेहश्च । सहसा परगतचित्तास्ताः स्वकुलं जहति ॥९३७॥
परिसस्स दु वीसंभं करेदि महिला बहुप्पयारेहिं ।
महिला वीसंमेदं बहुप्पयारेहिं वि ण सक्का ।।९३८॥ 'पुरिसस्स दु वीसंभ' पुरुषस्य विस्रम्भं जनयन्ति स्त्रियो बहुभिः प्रकारैर्युवतीविस्रम्भं नेतुं न शक्ताः पुमांसः ॥९३८॥
अदिलहुयगे वि दोसे कदम्मि सुकदस्सहस्समगणंती ।
पइ अप्पाणं च कुलं धणं च णासंति महिलाओ ।।९३९।। 'अदिलहुयगे वि दोसे' स्वल्पेऽपि दोषे कृते सुकृतशतमप्यगणय्य पति, आत्मानं, कुलं, धनं च नाशयन्ति युवतयः ॥९३९॥ उसे बलवान भी नहीं हिला सकते ।।९३४||
गा०—किन्तु इस प्रकारके अहंकार भी दुष्ट स्त्रियोंके द्वारा नष्ट कर दिये जाते हैं। जैसे अंकुशसे अति बलवान हाथी भी बैठा दिया जाता है ।।९३५।।
गा०-स्त्रीके कारण इस जगत्में भारत रामायण आदिमें वर्णित अनेक महायुद्ध हुए जो लोगोंके लिये भयकारक थे ।।९३६||
गा०—स्त्रियों में विश्वास, स्नेह, परिचय, कृतज्ञता नहीं है। वे पर पुरुषपर आसक्त होनेपर शीघ्र ही अपने कुलको अथवा कुलीन भी पतिको छोड़ देती हैं ।।९३७|| - गा०-स्त्री अनेक प्रकारोंसे पुरुषमें विश्वास उत्पन्न करती हैं किन्तु पुरुष अनेक उपायोंसे भी स्त्रीमें विश्वास उत्पन्न करने में समर्थ नहीं होता ।।९३८।।
गा०-थोड़ा-सा भी अपराध होनेपर स्त्री सैकड़ों उपकारोंको भुलाकर अपना, पतिका, १. णिसियाविज्जादि-मूलारा० । २. णाओ-आ० मु० ।
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