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विजयोदया टीका
५१५ 'अदीदसुमरणं' अतीतकालवृत्तिरतिक्रीडास्मरण । 'अणागदभिलासो' भविष्यति काले एवं ताभिः क्रीडां करि
आमि इति रत्यभिलाषः । 'इट्ठविसयसेवा वि य' इष्टविषयसेवापि च । 'अब्बंभं दसविधं एवं' दशप्रकारमब्रह्मतत् । अक्षीणरागस्य परद्रव्योपयोगाद्रागद्वेषौ भवतः । तेन संवृत्त्योपयोगं, परद्रव्यालम्बनं वीतरागतादिषु चरणं ब्रह्मचर्य ततोऽन्यदिदं दशविधमब्रह्मेति निरूपितं ।।८७४।।
एवं विसग्गिभूदं अब्बभं दसविहंपि णादव्वं ।
आवादे मधुरमिव होदि विवागे य कडुयदरं ।।८७५।। ‘एवं विसग्गिभूदं' विषाग्निना सदृशं एतदब्रह्म दशप्रकार मिति ज्ञातव्यं । आपाते मधुरमिव भवति विपाके तु कटुकतमं ।।८७५।।
स्त्रीविषयो रागोऽब्रह्म स च तत्प्रतिपक्षभूतवैराग्येन नाशयितु शक्यते इति मत्वा वैराग्योपायकथनायाचष्टे
कामकदा इत्थिकदा दोसा असुचित्तवुड्ढसेवा य ।
संसग्गादोसा वि य करंति इत्थीसु वेरग्गं ।।८७६।। 'कामकदा इत्थिकदा' कामकृताः स्त्रीकृताश्च दोषाः । अशुचित्वं, वृद्धसेवा, संसर्गदोषाश्च कुर्वन्ति स्त्रीषु वैराग्यं ॥८७६।। कामकृतदोषनिरूपणा प्रबन्धन उत्तरेण क्रियते
जावइया किर दोसा इहपरलोए दुहावहा होति ।
सव्वे वि आवहदि ते मेहुणसण्णा मणुस्सस्स ॥८७७।। 'जावदिया किर दोसा' इत्यादिना यावन्तः किल जन्मद्वये, 'दुहावहा' दुःखावहा भवन्ति दोषा हिंसादयस्तान्सर्वानपि आवहति मैथुनसंज्ञा मनुष्यस्य ।।८७७॥ सातवा भेद है । अतीत कालमें की गई रति क्रीडाका स्मरण करना आठवाँ भेद है। भविष्य कालमें मैं उनके साथ इस प्रकार क्रीड़ा करूँगा इस प्रकार अनागत रतिमें अभिलाषा नौवाँ भेद है। इष्ट विषयोंका सेवन दसवाँ भेद है । इस प्रकार अब्रह्मके ये दस भेद हैं ।।८७४॥.
गा०-इस प्रकार विष और आगके समान अब्रह्मके दस भेद जानना । यह प्रारम्भमें मधुर प्रतीत होता है किन्तु परिणाममें अत्यन्त कटु होता है ।।८७५।।
स्त्री विषयक राग अब्रह्म है। वह अपने विरोधी वैराग्यसे ही नष्ट किया जा सकता है। ऐसा मानकर वैराग्यके उपायोंका कथन करते हैं
गा०-काम विकारसे उत्पन्न हुए दोष, स्त्रियोंके द्वारा किये गये दोष, शरीरकी अशुचिता, वृद्ध जनोंकी सेवा, स्त्रीके संसर्गसे उत्पन्न हुए दोष, इनके चिन्तनसे स्त्रियोंमें वैराग्य उत्पन्न होता है ।।८७६॥
आगे कामजन्य दोष कहते हैंगा०-इस लोक और परलोकमें दुःखदायी जितने भी दोष हैं मनुष्यकी मैथुन संज्ञामें वे १. नं ज्ञानं श्रद्धा-आ० मु० ।
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