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विजयोदया टीका
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'सच्चं वृत्तूण' सत्यवचनमुक्त्वा । कीदग्भूतं ? 'अवगववोसं' दोषरहितं । क्व? 'जणस्स मज्झयारम्मि' जनमध्ये । 'पोदि पावदि' परमां प्रीतिं प्राप्नोति, परां 'जसं लभदि' यशश्च लभते । 'जगविस्सुदं' जगति विश्रुतं ।।८३५।।
सच्चम्मि तवो सच्चम्मि संजमो तह वसे सया वि गुणा ।
सच्चं णिबंधणं हि य गुणाणमुदधीव मच्छाणं ॥८३६॥ 'सच्चम्मि संजमो' सत्याधारी तपःसंयमी, शेषाश्च गुणाः । 'सच्चं णिबंधणं गुणाणं' गुणानां निबन्धनं सत्यं । 'मच्छाणं उदधीव' मत्स्यानामुदधिरिव ।।८३६॥
सच्चेण जगे होदि पमाणं अण्णो गुणो जदि वि से पत्थि ।
अदिसंजदो य मोसेण होदि पुरिसेसु तणलहुओ ॥८३७॥ 'सच्चेण जगे होदि' सत्येन जगति भवति । 'पमाणं' प्रमाणं । यद्यप्यन्यो गुणो नास्ति । अतीव संयतोऽपि सतां मध्ये तृणवल्लघुर्भवति मृषावचनेनेति गाथार्थः ।।८३७॥
होदु सिहंडी व जडी मुंडी वा जग्गओ व 'चीरधरो ।
जदि भणदि अलियवयणं विलंबणा तस्स सा सव्वा ॥८३८॥ . 'होदु सिहंडी' भवतु नाम शिखावान् । 'जडी मुडी वा' नग्नश्चीवरधरो वा यद्यलीकं वदति तस्य सा सर्वा विलम्बना ॥८३८।।
जह परमण्णस्स विसं विणासयं जह व जोव्वणस्स जरा । .
तह जाण अहिंसादी गुणाण य विणासयमसच्चं ।।८३९॥ 'जह परमण्णस्स' यथा परमान्नस्य विनाशकं विषं । यथा वा जरा यौवनस्य, तथा जानीहि अहिंसादिगुणानां विनाशकं असत्यं ।।८३९॥
गा०–जनसमुदायके बीच में दोषरहित सत्यवचन बोलनेसे मनुष्य जनताका प्रेम तथा जगत्में प्रसिद्ध उत्कृष्ट यश पाता है ।।८३५।। .
गा०-तप, संयम तथा अन्यगुण सत्यके आधार हैं। जैसे समुद्र मगरमच्छोंका कारण है उसमें मगरमच्छ पैदा होते और रहते हैं वैसे ही सत्य गुणोंका कारण है ।।८३६।।
- गा०-यदि मनुष्यमें अन्य गुण न हों तब भी वह एक सत्यके कारण जगमें प्रमाण माना जाता है। अति संयमी भी मनुष्य यदि असत्य बोलता है तो सज्जनोंके मध्यमें तृणसे तुच्छ होता है ।।८३७।।
गा-भले ही मनुष्य शिखाधारी हो, जटाधारी हो, सिर मुड़ाए हो, नंगा रहता हो या चीवर धारण किये हो, यदि वह झूठ बोलता है तो यह सब उसकी विडम्बनामात्र है ।।८३८॥
___ गा-जैसे विष उत्तमोत्तम भोजनका विनाशक है, बुढ़ापा यौवनका विनाशक है वैसे ही असत्य वचन अहिंसा आदि गुणोंका विनाशक है ।।८३९॥ .
१. चीवर-मु० ।
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