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विजयोदय टीका
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'परलोगम्मि वि दोसा' परभवेऽपि दोषास्त एव अप्रत्ययादय एव भवन्त्यलोकवादिनः । यत्नेनापि परिहरतः । किं ? ' मोसादिगे दोसे' मृषादिकान्दोषान् । मृषा आदिर्येषां स्तेयाब्रह्मपरिग्रहाणां ते मृषादयः । अद्गुणसं विज्ञानो बहुव्रीहिरत्र ग्राह्यः । स्तेयादिदोषान्परिहरतोऽपीत्यर्थः ॥ ८४४ ॥
भवतु नाम अप्रत्ययत्वादिका मृषावादस्य दोषाः कर्कशवचनादिना परभवे इह वाथ के दोषा इत्यत्रा
चष्टे
दोसा जे होंति अलियवयणस्स ।
seite परलो कक्कसवदणादण वि दोसा ते चेव णादव्वा ||८४५ ||
'इहलोगिग परलोगिग दोसा' अस्मिञ्जन्मनि परत्र च ये दोषा भवन्ति अलीकवादिनः । कर्कशवचनादीनामपि त एव दोषा इति ज्ञातव्याः ॥ ८४५ ॥
उपसंहारगाथा
देसि दोसाणं मुक्की होदि अलिआदिवचिदोसे |
परिहरमाणो साधू तव्विवरीदे य लभदि गुणे || ८४६ ||
एतेभ्यो दोषेभ्यो मुक्तो भवति व्यलीकादिवचनदोषान्यः परिहरति साधुः लभते 'नापि ? दोषप्रतिपक्षभूतान्प्रत्ययितत्वादिगुणान् । प्रत्ययः कीर्तिः, असंक्लेश, रतिः, कलहाभावः, निर्भयतादिकश्च ।
'सच्चं' ||८४६॥
व्याख्याय सत्यव्रतं तृतीयव्रतं निगदति-
माकुणसु तुमं बुद्धि बहुमप्पं वा परादियं घेत्तुं । दंतंतरसोधणयं कलिंदमेत पि अविदिण्णं ||८४७||
गा० - असत्य, चोरी, कुशील और परिग्रहरूप दोषोंका प्रयत्नपूर्वक त्याग करनेवाले भी असत्यवादीके परलोकमें भी अविश्वास आदि दोष होते हैं । अर्थात् असत्यवादी मरकर भी इन दोषों का भागी होता है ||८४४||
असत्य भाषणसे अविश्वास आदि दोष भले ही होते हों, किन्तु कर्कश आदि वचन बोलने से इस भव या परभवमें क्या हानि है ? इसका उत्तर देते हैं
गा० - इस लोक और परलोकमें असत्यवादी जिन दोषोंका पात्र होता है, कर्कश आदि वचन बोलनेवाला भी उन्हीं दोषोंका पात्र होता है || ८४५ ||
गा० - जो साधु असत्य भाषण आदि दोषोंको दूर कर देता है वह ऊपर कहे दोषोंसे मुक्त होता है— उसमें वे दोष नहीं होते । तथा उन दोषोंसे विपरीत विश्वास, यश, असंक्लेश, रति. कलहका अभाव, निर्भयता आदि गुणोंका भाजन होता है ||८४६ ||
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सत्य महाव्रतका कथन समाप्त हुआ । सत्य व्रतका कथन करके तीसरे व्रतका कथन करते हैं
१. ते तद्विपरीतेनेति नापि -आ० मु० ।
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