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भगवती आराधना वा कृतः । नदीपूरः, अग्न्युत्थापन, महावातापातः, वर्षाभिघातः, परचक्ररोध इत्यादिका आपाताः । रोगातः, शोकार्ता, वेदनात इत्यार्तता त्रिविधा। रसासक्तता 'मुखरता चेति द्विप्रकारता तित्तिणिदा शब्दवाच्या.। सचित्तं किमचित्तमिति शङ्कित द्रव्ये भञ्जनभेदनभक्षणादिभिराहारस्योपकरणस्य, वसते उद्गमादिदोषोपहतिरस्ति न वेति शङ्कायामप्युपादानं । अशुभस्य मनसो वाचो वा झटिति प्रवृत्तिः सहसेत्युच्यते ।
___एकान्तायां वसतौ व्यालमृगव्याघ्रादयस्तेना वा प्रविशन्ति इति भयेन द्वारस्थगने जातोऽतिचारस्तीव्रकषायपरिणामः प्रदोष इत्यच्यते । उदकराज्यादिसमानतया प्रत्येकं चतविकल्पाश्चत्वारः क परस्य वा बललाघवादिपरीक्षा मीमांसा तत्र जातोऽतिचारः। प्रसारितकराकृश्चितम् आकूति धनुषाद्यारोपणं उपलायुत्क्षेपणं,बाधनं, वृतिकण्टकाद्युल्लङ्घनं, पशुसादीनां मन्त्रपरीक्षणाय वा धारणं, औषधवीर्यपरीक्षणार्थमञ्जनस्य, चूर्णस्य वा प्रयोगः, द्रव्यसंयोजनया सानामेकेन्द्रियाणां च संमूर्च्छना परीक्षा । अज्ञानामाचरणं दृष्ट्वा स्वयमपि तथा चरति तत्र दोषानभिज्ञः । अथवाऽज्ञानिनोपनीतमुद्गमादिदोषोपहतं उपकरणादिकं सेवते इति अज्ञानात्प्रवृत्तोऽतीचारः । शरीरे, उपकरणे, वसती, कुले, ग्रामे, नगरे, देशे, बन्धुषु, पार्श्वस्थेषु वा ममेदंभावः स्नेहस्तेन प्रवर्तित अतीचारः। मम शरीरमिदं शीतो वातो बाधयति कटादि
३. उपयोग लगानेपर भी सम्यक्रूपसे अतीचारको नहीं जानना अथवा चित्त चंचल होनेसे अतीचारको न जानना अनाभोगकृत हैं। ४. नदीमें बाढ़ आना, आग लग जाना, महती आँधी आना, वर्षाकी अत्यधिकता, शत्रुसेनाका आक्रमण इत्यादि आपात है। ५. आर्तताके तीन प्रकार हैं-रोगसे पीडित, शोकसे पीड़ित, कष्टसे पीड़ित । ६. रसमें आसक्ति और बकवादमें आसक्ति इन दोनोंको तित्तिणदा कहते हैं । ७. यह सचित्त है या अचित्त ऐसी आशंका होनेपर भी उसको तोड़ना-फोड़ना खाना, अथवा आहार, उपकरण और वसतिमें उद्गम आदि दोष हैं या नहीं, ऐसी शंका होते हुए भी ग्रहण करना शंकित है। ८. अशुभ मन और वचनको झटपट प्रवृत्ति सहसा है।
९. एकान्त वसतिमें सिंह मृग सर्प और चोर आदि प्रवेश करते हैं इस भयसे द्वार बन्द कर देना भय है । १०. तीव्र कषाय युक्त परिणामको प्रदोष कहते हैं। क्रोध मान माया लोभ ये चार कपाय हैं इनमेंसे प्रत्येकके चार-चार भेद हैं जैसे जलकी रेखा, धूलकी रेखा, पृथ्वीकी रेखा और पत्थरकी रेखाके समान क्रोध होता है। . ११. अपने या दूसरेके बल लाघव आदिकी परीक्षाको मीमांसा कहते हैं। फैले हुए हाथको मोड़ने, मोड़े हुए हाथको फैलाने, धनुष आदिके चढ़ाने, पत्थर आदिके फेकने, दौड़ने, वाड कण्टक आदिको लांघने, मन्त्र परीक्षाके लिए पशु सर्प आदिको धारण करने, औषधकी शक्तिकी परीक्षाके लिए अंजन अथवा चूर्णका प्रयोग करने, द्रव्योंके संयोगसे त्रस जीवों और एकेन्द्रिय जीवोंकी उत्पत्ति करने आदिकी परीक्षा मीमांसा है।
१२. अज्ञानी जनोंका आचरण देखकर स्वयं भी वैसा करता है उसमें दोष नहीं जानता। अथवा अज्ञानीके द्वारा लाये गये उद्गम आदि दोषोंसे दूषित उपकरण आदिका सेवन करता है। यह अज्ञानवश हुआ अतिचार है। . १३. शरीरमें, उपकरणमें, वसतिमें, कुलमें, ग्राममें, नगरमें, देशमें, बन्धुमें और पार्श्वस्थ
१. सुखरतता-आ० । २. णार्थ धा-आ० मु० । ३. आचारः-मु० ।
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