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विजयोदया टीका
४९५ आजीवाधिकरणस्य चतुरो भेदानाचष्टे
णिक्खेवो णिव्वत्ति तहा य संजोयणा णिसग्गो य ।
कमसो चदु दुग दुग तिय भेदा होंति हु विदियस्स ।।८०७॥ "णिक्खेवो णिव्वत्ति तहा य संजोयणा णिसग्गो य' निक्षेपो निर्वर्तना संयोजना निसर्ग इति । 'कमसो' यथासंख्येन । 'चदु दुग दुग तिय भेदा' निक्षेपश्चतुःप्रकारः । निर्वर्तना द्विप्रकारा । संयोजना द्विप्रकारा । निसर्गस्त्रिविध इति सम्बध्यते ॥८०७।। निक्षेपस्य चतुरो विकल्पानाचष्टे
सहसाणाभोगिय दुप्पमज्जिद अपच्चवेक्खणिक्खेवो ।
देहो व दुप्पउत्तो तहोवकरणं च णिव्वत्ति ॥८०८॥ 'सहसाणाभोगियदुप्पमज्जिद अप्पच्चवेक्खणिक्खेवो' सहसानिक्षेपाधिकरणं, अनाभोगनिक्षेपाधिकरणं, दुःप्रमष्टनिक्षेपाधिकरणं, अप्रत्यवेक्षितनिक्षेपाधिकरणं चेति । निक्षिप्यते इति निक्षेपः । उपकरणं पुस्तकादि, शरीरं, शरीरमलानि वा सहसा शीघ्र निक्षिप्यमाणानि भयात् कुतश्चित्कार्यान्तरकरणप्रयुक्तेन वा त्वरितेन षड्जीवनिकायवाधाधिकरणतां प्रतिपद्यन्ते । असत्यामपि त्वरायां जीवाः सन्ति न सन्तीति निरूपणामन्तरण निक्षिप्यमाणं तदेवोपकरणादिकं अनाभोगिनिक्षेपाधिकरणमुच्यते । दुष्प्रमुष्टमुपकरणादि निक्षिप्यमाणं दुष्प्रमुष्टनिक्षेपाधिकरणं स्थाप्यमानाधिकरणं वा दुष्प्रमृष्ट निक्षेपाधिकरणं । प्रमार्जनोत्तरकाले जीवाः सन्ति न सन्तीति अप्रत्यवेक्षितं यन्निक्षिप्यते तदप्रत्यवेक्षितनिक्षपाधिकरणं । निवर्तनाभेदमाचष्टे-'देहो य दुप्पजुत्तो' दुःप्रयुक्तं शरीरं हिंसोपकरणतया निर्वय॑ते इति निर्वर्तनाधिकरणं भवति । उपकरणानि च सच्छिद्राणि यानि जीवबाधा
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विशुद्ध व्रतोंका घातक है ॥८०६|| .
अजीवाधिकरणके चार भेदोंको कहते हैं
गा०-अजीवाधिकरणके चार भेद हैं-निक्षेप, निर्वतना, संयोजना और निसर्ग। क्रमानुसार निक्षेपके चार भेद हैं। निर्वर्तनाके दो भेद हैं। संयोजनाके दो भेद है और निसर्गके तीन भेद हैं ।।८०७||
निक्षेपके चार भेद कहते हैं
गा०-टी०-निक्षेपके चार भेद हैं--सहसानिक्षेपाधिकरण, अनाभोगनिक्षेपाधिकरण, दुःप्रमृष्टनिक्षेपाधिकरण और अप्रत्यवेक्षित निक्षेपाधिकरण। रखनेको निक्षेप कहते हैं। उपकरण, पुस्तक आदि, शरीर अथवा शरीरके मल भयसे अथवा किसी अन्य कारणान्तरसे सहसा शीघ्र रखनेसे त्यागनेसे छहकायके जीवोंकी बाधाके आधार हो जाते है । यह सहसानिक्षेपाधिकरण है। जल्दी नहीं होनेपर भी 'पृथ्वी आदिपर जन्तु हैं या नहीं' यह देखे विना ही उपकरण आदिको रखना अनाभोगनिक्षेपाधिकरण है । उपकरण आदिको असावधानतासे या दुष्टतासे साफ करके रखना अथवा जिस स्थानपर उन्हें रखना है उस स्थानकी दुष्टतासे सफाई करना, जिससे जीवोंको कष्ट पहुंचे, दुष्प्रमृष्ट निक्षपाधिकरण है। स्थानकी सफाई करनेके पश्चात् वहीं जीव हैं या नहीं यह देखे विना उपकरणादि रखना अप्रत्यवेक्षित निक्षेपाधिकरण है। दुष्प्रयुक्त शरीर-शरीरकी असावधानतापूर्वक प्रवृत्ति हिंसाका कारण होती है उसे निर्वतनाधिकरण कहते हैं। छिद्रवाले
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