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विजयोदया टीका
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प्राभूतज्ञस्य यच्छरीरं त्रिकालगोचरं तदप्यन्तरेण श्रुतज्ञानं नोपजायते इति शरीरमपि कारणं तत्रापि नमस्कारशब्दो वर्तते । यत् तद् भतशरीरं त्रिविकल्पं च्युतं, च्यावितं, त्यवतमिति । आयुषो निःशेषगलनादात्मनश्च्युतं एकं । चेतनस्य वा उपसर्गस्य बलाद् च्यावितं च्यावितशब्देनोच्यते । आयुषोऽभावमवेत्य आत्मनैव यत्त्यक्तं तत्त्यक्तशब्देनोच्यते । तत्त्रिविकल्पं भक्तप्रत्याख्यानं, प्रायोपगमन, इङ्गिनीमरणं इति । तेष्वन्यतमेन त्यक्तं विधिना कायकषायसल्लेखनापुरःसरं प्रद्रज्यातःप्रभृति निर्यापकगुरुसमाश्रयण दिवसमन्त्यं कृत्वा मध्ये प्रवृत्तान् ज्ञानदर्शनचारित्राणां अतिचारानालोच्य तदभिमतप्रायश्चित्तानुसारिणः द्रव्यभावसल्लेखनामुपगतस्य त्रिविधाहारप्रत्याख्यानादिक्रमेण रत्नत्रयाराधनं भक्तप्रत्याख्यानं । इङ्गिणीमरणप्रायोपगमने वक्ष्यमाणलक्षणे। तैः परित्यक्तं त्यक्तमुच्यते । यदेव तत्सति जीवे नमस्कारोपयोगवति जीववदेव कारणमासीन्नमस्कारोपयोगस्य तदेवेदमिति तत्रापि नमस्कारशब्दः प्रवर्तते । नमस्कारोपयोगरूपेण यो भविष्यति स भावीति भण्यते । स्थापना अर्हदादीनां नो आगमद्रव्यव्यतिरिक्तनोकर्मनमस्कारशब्देनोच्यते । आगमनस्कारज्ञानं आगमभावनमस्कारः । नमस्क्रियमाणाहदादिगुणानुरागवतः मुकुलीकृतकरकमलस्य, प्रणामो नो आगमभावनमस्कार इह गृह्यते ।
निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानरनयोगद्वारैनिरूप्यते । अहंदादिगुणानुरागवतः आत्मनो वाक्कायक्रियास्तवनशिरोवनतिरूपो नमस्कारः। सम्यग्दृष्टिों आगमभावनमस्कारस्य स्वामीति । मतिश्रुत
हैं-ज्ञायकशरीर, भावि, तद्वयतिरिक्त । नमस्कार प्राभूतके ज्ञाताका जो त्रिकालवर्ती शरीर है, उसके विना भी श्रु तज्ञान नहीं होता, इसलिए शरीर भी कारण है अतः उसे भी नमस्कार शब्दसे कहते हैं। उनमेंसे जो भूत शरीर है उसके तीन भेद हैं—च्युत, च्यावित, त्यक्त । आयुकर्मके पूर्णरूपसे समाप्त होनेपर छूटा शरीर च्युत कहाता है। उपसर्गके कारण छूटा शरीर च्यावित कहाता है। आयुका अभाव जानकर स्वयं ही त्याग किया शरीर त्यक्त कहाता है। उस त्यक्त शरीरके तीन भेद हैं-भक्तप्रत्याख्यान, प्रायोपगमन, इंगिनीमरण । उनमेंसे किसी एक विधिसे शरीर और कषायकी सल्लेखनापूर्वक छोड़ा गया शरीर त्यक्त है। दीक्षा ग्रहण करनेसे लेकर निर्यापक गुरुके पास आश्रय लेनेके अन्तिम दिनतक लगे ज्ञान दर्शन और चारित्रके अतिचारोंकी आलोचना करके गरुके द्वारा दिये गये प्रायश्चित्तको स्वीकार करके द्रव्यसल्लेखना और भावसल्लेखनापूर्वक तीन प्रकारके आहारके त्याग आदिके क्रमसे रत्नत्रयकी आराधना करना भक्तप्रत्याख्यान है। इंगिनीमरण और प्रायोपगमनका कथन आगे करेंगे। इन तीनोंके द्वारा त्यागा गया शरीर त्यक्त कहाता है। जब शरीरके रहनेपर जीव नमस्कारमें उपयोग लगाता था तब जीवकी तरह ही शरीर भी नमस्कारमें उपयोग लगाने में कारण था। वही यह शरीर है इस प्रकार शरीरमें नमस्कार शब्दकी प्रवृत्ति होती है। जो भविष्यमें नमस्कारमें उपयोगरूपसे परिणत होगा उसे भावि कहते हैं। अर्हन्त आदिकी स्थापनाको नोआगमद्रव्य व्यतिरिक्त नोकर्म नमस्कार शब्दसे कहते हैं।
नमस्कार विषयक आगमके ज्ञानको आगमभाव नमस्कार कहते हैं। जिन अर्हन्त आदिको नमस्कार करता है उनके गुणोंमें अनुरागपूर्वक दोनों हाथोंको जोड़ नमस्कार करनेवालेका जो नमस्कार है वह नोआगमभाव नमस्कार है ।
___ निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति और विधान इन अनुयोग द्वारोंसे नमस्कारका कथन करते हैं।
अर्हन्त आदिके गुणोंमें अनुरागी आत्माका वचनके द्वारा स्तवन और कायके द्वारा सिरको
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