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भगवती आराधना महुकरिसमज्जियमहुं व संजमं थोवथोवसंगलियं ।
तेलोक्कसव्वसारं णो वा पूरेहि मा जहसु ।।७७९।। 'महकरिसमज्जयमहुं व' मधुकरीभिः समजितं मध्विव । 'संजम' चारित्रं । 'थोवयोवसंगलिदं' स्तोकस्तोकेनोपचितं । 'तेलोक्कसव्वसारं' त्रैलोक्यस्य सर्वसारं विष्टपत्रये यदतिशयवत् स्थानं, मानं, ऐश्वर्यं सुखं वा तस्य कारणत्वात् त्रैलोक्यसर्वसारं । ‘मा जहसु' मा त्याक्षीः ॥७७९॥
दुक्खेण लभदि माणुस्सजादिमदिसवणदंसणाचरित्तं ।
दुक्खज्जियसामण्णं मा जहसु तणं व अगणंतो ।।७८०।। 'दुवखेण लभदि माणुस्सजादिमदिसवणदंसणचरित्तं' दुःखेन लभते मनुष्यजन्म जंतुः । सूत्रे यद्यपि मणुस्सजादिशब्दः सामान्यवाच्युपात्तस्तथापि विशेष'मत्रासो वदति इति ग्राह्यं । मनुजा हि चतुःप्रकारा:
कर्मभूमिसमुत्थाश्च भोगभूमिभवास्तथा । अंतरद्वीपजाश्चैव तथा सम्मच्छिमा इति ॥ असिमषिः कृषिः शिल्पं वाणिज्यं व्यवहारिता । इति यत्र प्रवर्तते नणामाजीक्योनयः॥ प्रपाल्यसंयम यत्र तपःकर्मपरा नराः। सुरसंगतीव सिद्धि प्रयांति हतशत्रवः ॥ एताः कर्मभुवो ज्ञेयाः पूर्वोक्ता दश पञ्च च । यत्र संभूय पर्याप्ति यान्ति ते कर्मभूमिजाः ॥
मद्यतूर्याम्बराहारपात्राभरणमाल्यवैः । इन रति, अरति, हर्ष, भय, उत्सुकता, दीनता आदि भावोंसे युक्त होने पर भी अपने भोग अथवा उपभोगके लिये मनमें जीव हिंसाका विचार मत करो ॥७७८॥
गा-मधु-मक्खियाँ जिस प्रकार थोड़ा-थोड़ा करके मधुका संचय करती हैं उसी प्रकार थोड़ा-थोड़ा करके संचित किया गया संयम तीनों लोकोंमें जो सातिशय स्थान मान ऐश्वर्य अथवा सुख है उस सबका कारण होनेसे सारभूत है । उसे यदि पूर्ण नहीं कर सकते तो उसका त्याग तो मत करो ||७७९||
गा-टी--प्राणी बड़े दुःखसे मनुष्य जन्म पाता है। गाथामें यद्यपि मनुष्य जाति शब्द सामान्य वाची है तथापि यह विशेष मनुष्यको कहता है, ऐसा अर्थ लेना चाहिये। मनुष्य चार प्रकारके होते हैं-कर्म भूमिमें उत्पन्न हुए, भोग भूमिमें उत्पन्न हुए, अन्तर्वीपोंमें उत्पन्न हुए तथा सम्मूर्छन जन्मसे उत्पन्न हुए। जहाँ मनुष्य असि, मषि, कृषि, शिल्प, व्यापार और सेवाके द्वारा जीवन यापन करते हैं, तथा जहाँ मनुष्य संयमका पालन करके तपस्यामें तत्पर होकर देवगति प्राप्त करते हैं अथवा कर्म शत्रुओंको मारकर मोक्ष जाते हैं वे कर्मभूमियाँ हैं। वे कर्मभूमियाँ पन्द्रह हैं। उनमें जन्म लेकर वे कर्मभूमिज मनुष्य पर्याप्तियाँ पूर्ण करते हैं। और
१. षमवसादयति इति आ० ।-षमवसाययति इति मु० । २. संगतिवत् सि-आ० ।-संगति वा सि-मु० ।
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