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भगवती आराधना भक्तिमाहात्म्यं फलातिशयोपदर्शनेन कथयितुकामोऽथाख्यानमुपक्षिपति गाथायाम्
वंदणभत्तीमित्तेण मिहिलाहिओ य पउमरहो।
देविंदपाडिहेरं पत्तो जादो गणधरो य ॥७५१॥ 'वंदणभत्तीमित्तेण' वन्दनानुरागमात्रेण चैव । 'मिहिलाहिओ य पउमरहो' मिथिलानगराधिपतिः पद्मरथो नाम । 'देविंदपाडिहेरं पत्तों' देवेन्द्रकृतां पूजां प्राप्तवान् । 'जादो गणधरो य' गणधरश्च जातः । भत्ती ॥७५१॥
आराधणापुरस्सरमणण्णहिदओ विसुद्धलेस्साओ।
संसारस्स खयकर मा मोचीओ णमोक्कारं ॥७५२॥ 'आराधणापुरस्सरं णमोक्कारं मा मोचीओं' आराधनाया अग्रसरं नमस्कारं मा मुश्च । कीदृग्भूतं ? 'संसारस्स खयकर' संसारस्य पञ्चविधपरिवर्तमानस्य क्षयकरं। 'अणण्णहिदओ' अनन्यगतचित्तः सन् । 'विसुद्धलेस्साओ' विशद्धलेश्यया परिणतः । तत्र नमस्कारः नामस्थापनाद्रव्यभावविकल्पेन चतुर्दा व्यवस्थितः । तत्र नाम नमस्कारो नाम यस्य कस्यचिन्नमस्कार इति कृता संज्ञा इदमस्य नामधेयं यथा स्यादिति नियुज्यमानं पदं सवं सर्वत्र प्रवर्तते । एवं नमस्करणव्यापृतो जीवस्तस्य कृताञ्जलिपुटस्य यथाभूतेनाकारेणावस्थापिता मूर्तिः स्थापनानमस्कारः । नमस्कारप्राभूतं नामास्ति ग्रन्थः यत्र नयप्रमाणनिक्षेपादिमुखेन नमस्कारो निरूप्यते, तं यो वेत्ति न च साम्प्रतं तन्निरूप्येऽर्थे उपयुक्तोऽन्यगतचित्तत्वात् स नमस्कारयाथात्म्यग्राहिश्रुतज्ञानस्य कारणत्वादागमद्रव्यनमस्कार इत्युच्यते । नो आगमद्रव्यनमस्कारस्त्रिविधः, ज्ञायकशरीरभावितद्वयतिरिक्तभेदात् । नमस्कार
विशिष्ट फलके द्वारा भक्तिका माहात्म्य कहनेकी इच्छासे ग्रन्थकार उदाहरण उपस्थित करते हैं
गा०–तीर्थंकरकी वन्दनाके अनुरागमात्रसे मिथिला नगरका स्वामी पद्मरथ देवेन्द्रके द्वारा पूजित हुआ और वासुपूज्य तीर्थकरका गणधर हुआ ।।७५१॥
विशेषार्थ-मिथिलाका राजा पद्मरथ भगवान् वासुपूज्य तीर्थकरकी वन्दनाके लिए गया। मार्गमें दो देवोंने उसकी परीक्षाके लिए घोर उपसर्ग किया। किन्तु वह विचलित नहीं हुआ। देवोंने उसकी दृढ़भक्तिसे प्रसन्न होकर उसकी पूजा की। और वह भगवान् वासुपूज्यके समवशरणमें जाकर दीक्षा ग्रहण करके उनका गणधर बन गया ॥७५१॥
गा०-नमस्कार मन्त्र आराधनाका अग्रेसर है, नमस्कारमन्त्रपूर्वक ही आराधना की जाती है। पाँच परावर्तनरूप संसारका क्षय करनेवाला है । सब ओरसे मनको हटाकर विशुद्ध लेश्यापूर्वक नमस्कार मन्त्रकी आराधना कर । इसे छोड़ना नहीं ।।७५२।।।
टी०-नाम, स्थापना, द्रव्य और भावके भेदसे नमस्कार चार प्रकारका होता है। जिस किसीका नमस्कार नाम रखना नाम नमस्कार है। इसका यह नाम है इस प्रकारका व्यवहार सर्वत्र चलता है। इसी प्रकार नमस्कार करते हुए जीवकी दोनों हाथोंको जोड़े हुए आकारकी स्थापित मूर्ति स्थापना नमस्कार है। नमस्कार प्राभृत नामक ग्रन्थमें नय, प्रमाण, निक्षेप आदिके द्वारा नमस्कारका कथन है। जो उसे जानता है किन्तु वर्तमानमें उसमें कहे हुए अर्थमें उपयुक्त नहीं है, उसका मन अन्यत्र लगा है। वह व्यक्ति नमस्कारके यथार्थ स्वरूपको ग्रहण करनेवाले श्रुतज्ञानका कारण होनेसे आगमद्रव्य नमस्कार कहाता है। नो आगमद्रव्य नमस्कारके तीन भेद
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